SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३६७ बेजोड़ सामिक भक्ति करते हुए, उदार दिल श्राद्धवर्य श्री रसिकभाई शाह "मेरे ३२ साल के दीक्षा पर्याय में ऐसे उदारदिलवाले सार्मिक भक्त मैंने देखे नहीं हैं" ! - सुप्रसिद्ध प्रवचनकार, युवा प्रतिबोधक, प.पू.आ.भ. श्री रत्नसुंदर सूरीश्वरजी म.सा. ने अपने एक प्रवचन में जिनके लिए ऐसे उद्गार अभिव्यक्त किए थे वे श्राद्धवर्य श्री रसिकभाई शाह (उव. ७० करीब) गुजरात में सुरत के पास बारडोली (स्टेशन रोड़) जैन संघ के प्रमुख के रूप में श्री संघ की अनुमोदनीय सेवा कर रहे हैं। कोई भी महाराज साहब आर्थिक दृष्टि से कमजोर किसी भी सार्मिक के प्रति रसिकभाई का ध्यान खींचते हैं तब तुरंत वे म.सा. सूचित करें उससे अधिक या दुगुनी राशि प्रदान करने द्वारा साधर्मिक भक्ति करते हैं । __ प्रतिदिन हजारों रूपयों और प्रतिमाह लाखों रूपयों का दान करते हुए इस उदारदिल सुश्रावक का बहुमान बारडोली के १८ ज्ञातीय लोगोंने मिलकर किया तब रसिकभाईने नम्रता पूर्वक प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि, " मैं तो मेरी शक्ति की अपेक्षा से आधा दान भी नहीं करता हूँ ।" आज से कुछ साल पहले प.पू. पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखर विजयजी म.सा. का बारडोली में चातुर्मास हुआ था तब से रसिकभाई विशेष रूप से धर्म में जुड़े हुए हैं। धन्य है ऐसे उदारदिल साधर्मिक भक्त सुश्रावकश्री को ! आज तकती पर नाम लिखवाने की शर्त से लाखों-करोड़ों रूपयों का दान देनेवाले कई दाता मिलते हैं मगर आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए साधर्मिक बंधुओं को गुप्त रूपसे सहाय करने वाले ऐसे दाता बहुत विरल होते हैं। प्रत्येक श्रीमंत श्रावक रसिकभाई के जीवन से प्रेरणा लेकर उनका अनुसरण करें तो कितना अच्छा होगा !
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy