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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ ३४४ उपरोक्त युवक की पत्नी सीधी तरह से तो ऐसा कैसे कर सकती थी । इसलिए वह 'मैं पडौश के गाँवमें मेरे स्वजनों को मिलने के लिए जाती हूँ ऐसा सेठजी को कहना' इस तरह नौकर को कहकर अपने बच्चे को लेकर पीखाले गाँवमें जाने के लिए बस स्टेन्ड की और रवाना हुई । युवक भोजन के लिए घर आया तब नौकरने सेठानी द्वारा कही हुई बात बतायी। युवकको शंका हुई । उसने नौकर को जरा धमकाकर पूछा तब उसने सही बात बता दी । दृढ सम्यक्त्वी इस युवक को यह बात कैसे मान्य हो सकती है ? उसने अपनी गाड़ी के द्वारा नौकर के साथ संदेश भेजा कि 'पीर - फकीर के पास जाना हो तो खुशी से जाना मगर बादमें मेरे घरमें प्रवेश मत करना !...' इसे सुनते ही पत्नी बीचमें से ही वापस लौट आयी !!! - ये तीन प्रसंग जिन के लिए कहे गये हैं वे थे अमलनेर (महाराष्ट्र) के नेमिचंद्र मिश्रीमल कोठारी पेढीवाले दृढ सम्यग्दर्शनप्रेमी सुश्रावक श्री नेमिचंदजी कोठारी । उनके दृढ सम्यक्त्व प्रेमने उनको बादमें सर्वविरति चारित्र दिलाया । नेमिचंदजी तपोनिधि प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय त्रिलोचनसूरीश्वरजी म.सा. के सुविनीत शिष्य मुनिराज श्री नंदीश्वरविजयजी बने । उनकी दीक्षा के दिन अमलनेरमें विविध गाँव-नगरों के ३६ मुमुक्षों की दीक्षा एक साथ संपन्न हुई थी । उस दीक्षा महोत्सवमें श्रीनेमिचंदजी कोठारी के परिवार जनोंने तन-मन-धन से अत्यंत अनुमोदनीय सहयोग दिया था । (जय हो दृढसम्यग्दर्शन प्रेम के दाता श्री अरिहंत परमात्माका प्रूफ रिडींग (गुजरातीमें) चालु था तब उपरोक्त मुनिराज श्री नंदीश्वरविजयजी म.सा. के प्रथम बार दर्शन हमको हुए थे । तब ७२ साल की उम्र में भी अठ्ठम तपका तीसरा उपवास था । वे हंमेशा एकाशन तप करते हैं । पाँव में फेक्चर होने से नटबोल बैठाये हैं फिर भी पैदल विहार ही करते हैं । डोली या विल चेर का उपयोग करने की उनकी जरा भी इच्छा नहीं 1 है । धन्य है उनकी पापभीरुता को । -संपादक)
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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