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________________ ३१६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ भक्ति-मैत्री-शद्धि के त्रिवर्णी संगमरूप बजाड तपस्वी शेषमलजी एका मूलतः सादड़ी (राजस्थान) के निवासी किन्तु कई वर्षों से मद्रासमें रहते हुए बेजोड़ तपस्वी श्राद्धवर्य श्री शेषमलजी पंड्या अध्यात्मयोगी प. पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. के सत्संग से विशेष रूप से आराधना साधनामय जीवन जी रहे हैं । उन्होंने वर्धमान आयंबिल तपकी १०० + १५ ओलियाँ की हैं। उनमें से १ से ९४ तक की ओलियों में एकांतरित उपवास करते थे । सभी ओलियों के सभी आयंबिल ठाम चौविहार पुरिमनु के पच्चक्खाण पूर्वक बहुधा दो ही द्रव्यों से अभिग्रह के साथ किये हैं । ६८ वी ओली केवल चावल और पानी से ही की। १०० वी ओली एक ही धान्य से की । उनके घर में सुंदर गृह जिनालय है । तपश्चर्या और प्रभुभक्ति के साथ साथ अनुकंपा और जीवमैत्री भी बहुत अच्छी तरह से उन्होंने आत्मसात् की है । मद्रास में गरीबों के लिए नित्य भोजन की अद्भुत व्यवस्था द्वारा वे अनुमोदनीय शासन प्रभावना कर रहे हैं। इस तरह गृह जिनालय आदि के द्वारा श्रेष्ठ जिनभक्ति, दीनदुःखियों के प्रति अनुकंपा द्वारा जीवमैत्री और बेजोड़ तपश्चर्या के द्वारा आत्मशुद्धि के त्रिवर्णी संगम द्वारा सुश्रावक श्री शेषमलजी पंड्या अपने मानवभवको सार्थक बना रहे हैं और अनेकों के लिए उत्तम प्रेरणा रूप बन रहे हैं । उनके जीवनमें रहे हुए भक्ति-मैत्री-शुद्धि आदि सद्गुणों की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना । पता : शेषमलजी पंड्या ७४ ई. वी. के. सम्पथ रोड, वेपेरी चुलाई, चेन्नई-६००००७ फोन : ०४४-५८९७६८-५६४६९९ (घर) मद्रासमें श्री ललितभाई शाह नाम के सुश्रावक भी नवकार महामंत्र के विशिष्ट साधक एवं प्रभावक हैं । वे भी अध्यात्मयोगी प. पू. पंन्यास प्रवर श्रीभद्रंकर विजयजी म.सा. के परम भक्त एवं कृपापात्र श्राद्धवर्य हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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