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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३१५ प्रति रविवार के दिन वे कुंभोजगिरि तीर्थ की यात्रा करने के लिए अचूक जाते हैं और वहाँ के दवाखाने में अवेतन सेवा देते हैं । गरीबों के वे आधार हैं। गरीबों को निःशुल्क सेवा देते हैं । अपने पिताजी को वे कहते हैं कि, 'मुझे किसी को लूटना नहीं है, मुझे तो सभी की सेवा करनी है "। कैसी उदात्त भावना ! सारे बेलगाम जिले के सभी पुरुष आराधकों में डो. अजितभाई प्रथम नंबर के आराधक हैं । अन्य जैन डोक्टर भी अजितभाई के जीवनमें से प्रेरणा पाकर आराधनामय एवं सेवालक्षी जीवन जीने लगें तो आत्मकल्याण के साथ समाज का उद्धार एवं शासन की कैसी अद्भुत प्रबावना हो सकती है ! __इसी तरह जैन वकील, जैन प्रोफेसर, जैन शिक्षक, जैन एन्जिनीयर इत्यादि व्यावहारिक दृष्टिसे अग्रगण्य माने गये महानुभाव भी इस दृष्टांतमें से प्रेरणा लेकर अपने अपने जीवन को आराधनामय और निःस्वार्थ सेवालक्षी बनाएँ तो कितना अच्छा ! डॉ. अजितभाई के ज्येष्ठ बंधु दीपकभाई भी वि. सं. २०४८ के चातुर्मास से अजितभाई की तरह ही आराधना में लीन हो गये हैं ।। ऐसे धर्मात्माओं की एवं उनको धर्म में जोड़नेवाले महात्माओं की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना । शंखेश्वर तीर्थ में आयोजित अनुमोदना समारोहमें डॉ. अजितभाई भी पधारे थे । उनकी तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 18 के सामने । पता : डॉ अजितभाई दीवाणी गुरुवार पेठ, मु.पो. निपाणी, जि. बेलगाम (कर्णाटक) पिन : ५९१२३७ फोन : ०८३३८ - २०४८५/३१४८५
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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