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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३११ होगी ? और उन्होंने पारणा किये बिना तपश्चर्या चालु रखी । फिर तो दूसरे वर्ष प्रवर्धमान परिणामों के कारण आजीवन आयंबिल चालु रखने के संकल्प के साथ लगातार १०० ओलियाँ पूर्ण करने की भीष्म प्रतिज्ञा ग्रहण की ! यह भीष्म प्रतिज्ञा ऐसी कोई पुण्य, पल में हुई कि रतिलालभाई के जीवन में उत्तरोत्तर भावना की बाढ बढती ही गई । आयंबिल का तप स्वाभाविक रूप से भी कष्ट साध्य है ही, लेकिन रतिलालभाई ने विविध अभिग्रहों के द्वारा उसे विशेष रूपसे कष्ट साध्य बनाया। वि. सं. २०१९ से उन्होंने ठाम चौविहार (आयंबिल करते समय ही पानी पीना) और बिना नमक के केवल ५ द्रव्यों से ही आयंबिल करने की प्रतिज्ञा ली । वि. सं. २०२३ से केवल दो ही द्रव्य (रोटी और दाल) द्वारा ठाम चौविझर आयंबिल करने का अभिग्रह लिया । ऐसी भीष्म आयंबिल तपश्चर्या के दैरान भी बीच बीच में उपवास छठ्ठ आदि भी करते रहते थे । इस तरह विविध अभिग्रहों के द्वारा वर्धमान तप को भीष्मातिभीष्म बनाकर वि. सं. २०३२ में कार्तिक सुदि ६ के दिन रतिलालभाईने लगातार १०० ओलियाँ परिपूर्ण की तब विविध व्यक्ति एवं अनेक संघों की उदार भावना से, वीरमगाम श्री जैन स्वयंसेवक मंडल के अथक प्रयत्नों से भव्यातिभव्य समारोह का आयोजन किया गया था । उस आयोजन में प. पू. वर्धमान तपोनिधि आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय राजतिलकसूरीश्वरजी म.सा. की १९५ (१०० + ९५) वी ओली के पारणे का प्रसंग भी सम्मिलित होने से इसकी अनुमोदना के आंदोलन भारतभर में व्याप्त हो गये थे । लगातार १०० ओलियों के बाद भी रतिलालभाईने अपनी तपोयात्रा आगे बढाई मगर १०३ ओलियाँ पूर्ण होने के बाद उनकी शरीर शक्ति एकदम क्षीण हो गयी और अनेक लोगों के आग्रह से उनको पारणा करना पड़ा, मगर केवल ७ महिनों तक एकाशन-बियासन आदि करने के बाद पुनः बिना नमक के दो द्रव्यों से आयंबिल चालु किये गये और ऐसे भीष्म आयंबिल तपकी आराधना करते करते वि. सं. २०३४ में चैत्र वदि ५ के दिन श्री रतिलालभाई का समाधि पूर्वक स्वर्गवास हुआ ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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