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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३०९ सर्वज्ञ-सर्वदर्शी ऐसे जिनेश्वर भगवंतोंने बताया हुआ आयंबिल तप शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक आरोग्य के लिए अत्यंत आशीर्वाद रूप सिद्ध हुआ है । इसीलिए तो ऐसे विलासी विज्ञान युगमें भी हजारों आराधक, विषमिश्रित मोदक तुल्य परिणाम कटु ऐसे स्वादिष्ट भोजन का स्वेच्छा से त्याग करके अमृत तुल्य आयंबिल तप को मानो जीवन व्रत बनाया हो उसी तरह चढते परिणाम से आयंबिल तप की ओली के उपर ओली सहर्ष करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । आयंबिल तपकी आराधना भी नवपदजी की ओली, एकांतरित या संलग्न ५०० या १००० आयंबिल, पर्वतिथियों में आयंबिल इत्यादि अनेक तरह से होती हैं, मगर वर्धमान आयंबिल तप की महिमा अपने आप में अनूठी है, क्योंकि इसमें वर्धमान याने आगे बढ़ते हुए क्रमसे ओलियाँ करने का विधान होने से अधिक अधिकतर ओलियाँ करने का उत्साह वृद्धिगत होता ही रहता है। इसी वजह से आज सैंकडों तपस्वीओंने वर्धमान तपकी १०० ओलियाँ पूर्ण करके पुनः दूसरी बार वर्धमान तप की नींव डालकर ओलियाँ करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं, और कोई विरल आत्माएँ तो २ बार सौ ओलियाँ पूर्ण करके तीसरी बार इसी तप की नींव डालकर आगे बढ रहे हैं । ऐसे परम तपस्वी आत्माओं के दर्शन, वंदन या स्मरण मात्र से भी हमारी अनंत कर्मराशि की निर्जरा होती है । एक आयंबिल के बाद तुरंत एक उपवास करने पर प्रथम ओली पूर्ण होती है, फिर लगातार दो आयंबिल और एक उपवास करने से दूसरी ओली पूर्ण होती है । इस तरह क्रमशः आगे बढ़ते हुए पाँच ओलियाँ लगातार करने से कुल १५ आयंबिल और ५ उपवास के द्वारा २० दिनों में वर्धमान तप की नींव डाली जाती है । मकान की नींव डालने के बाद अनुकूलता के मुताबिक उपर की मंजिलें बनाई जा सकती हैं, उसी तरह लगातार ५ ओलियों द्वारा वर्धमान तपकी नींव डालने के बाद छठ्ठी, सातवीं इत्यादि ओलियाँ अनुकूलता के अनुसार लगातार या कुछ समय के व्यवधान के बाद भी की जा सकती
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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