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________________ ३०१ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ मुनिराज श्री हर्षसागरजी म.सा. के शिष्य मुनि विरागसागरजी एवं मुनि श्री विनीतसागरजी के रूपमें संयम की अनुमोदनीय आराधना करते हैं। सर्व जीवों को अभयदान देनेवाले सर्वविरति धर्म (साधु जीवन) का स्वीकार करने में असमर्थ अशोकभाई जीवदया के अनेकविध सत्कार्य अत्यंत उत्साह के साथ हमेशा करते रहते हैं । एक ही प्रसंग द्वारा उनकी जीवदया के विषयमें रुचि का हमें खयाल आ जाएगा । एक बार कसाइयों के पास से ३ भैंसें अपना जीवन बचाने के लिए भाग निकलीं । उनमें से २ भैंसे ट्रेइन अकस्मात से मर गयीं और तीसरी भैंस रेल की पटरियों के पास एक गहरे और संकरे गड्ढे में फंस गयी। कुछ लोगों का ध्यान उसकी ओर जाने पर उन्होंने नगरपालिका के अधिकारी को फोन कर इस घटना की खबर दी, मगर किसी कारणवशात् उस भैंस को बाहर निकालने के लिए २ दिन तक तो कोई भी नहीं आया। आखिर तीसरे दिन किसीने अशोकभाई को इस बात की खबर देने पर वे अपने सारे कार्य छोड़कर उपर्युक्त घटना स्थल पर दौड़ आये । बादमें तुरंत वे रेल्वे स्टेशन पर गये और रेल्वे अधिकारी को सारी बात समझाकर भैंस को बचाने के लिए ३ एन्जिन, ३ डिब्बे और २५ आदमियों का स्टाफ देने की विज्ञप्ति की । प्रारंभ में तो रेल अधिकारीने इस बात को टालने के लिए अपने पिताजी का श्राद्धदिन होने का बहाना निकाला, मगर जीवदया की खुमारीवाले अशोकभाईने तुरंत उनको स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि 'आपके पिताजी तो परलोक में चले गये हैं और यह भैंस तो अभी जिन्दा है, इसलिए किसी भी हालतमें आपको इतनी सहायता देनी ही पड़ेगी अन्यथा... ।' ... और तुरंत अधिकारीने उनको उपर्युक्त व्यवस्था कर दी । उनकी सहायता से भैंस को गड्ढे में से बाहर निकालकर योग्य उपचार किए गये, मगर कमनसीब से दूसरे दिन उस भैंस की आयु खत्म हो गयी । लेकिन चमत्कार यह हुआ कि वह रेल्वे अधिकारी अशोकभाई को कहने लगा कि - "सचमुच तुम कोई ओलिया आदमी हो । २ घंटों तक दोनों ओर से किसी भी गाडी को आगे बढ़ने के लिए हमने सिग्नल नहीं दिया फिर भी हमारे उपरी अधिकारीयोंमें से किसी ने भी मुझे फोन से भी
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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