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________________ २९८ १३२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ जीवदया के चमत्कार से मृत्यु के द्वार से वापस लौटे श्री बापुलालभाई मोहनलाल शाह गुजरातमें पालनपुर जिले के चीमनगढ़ गाँव में एक अजीब जीवदया प्रेमी सुश्रावक रहते हैं । आसपास के गाँवों में से कसाइओं को पशु बेचनेवाले लोगों के पास से हर महिने करीब १०० जितने जीवों को अभयदान देने का महान कार्य वे पिछले २३ साल से कर रहे हैं । जिस दिन एक भी जीव को अभयदान न दे सकें उसके दूसरे दिन उपवास करने की प्रतिज्ञा वि.सं २०३२ में ५७ साल की उम्र में उन्होंने ली है । आज ८० साल की उम्र में भी जीवदया के अनेकविध कार्यों में वे दिनरात लीन हैं । पिछले २३ साल से वे नित्य एकाशन करते हैं । बीचमें लगातार दो वर्षीतप भी कर लिए जिसमें से एक वर्षीतप चौविहार उपवास के साथ किया था । ५०० आयंबिल भी कर लिए । आश्चर्य की बात तो यह है कि आज से २३ साल पहले जब उनका स्वास्थ्य अत्यंत खराब हो जाने से चिकित्सकों ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि " अब यह केस हमारे बस की बात नही हैं, यह मरीज अब थोड़े ही दिनों का मेहमान है " ऐसी स्थितिमें से बचकर आज २३ साल से इतना तपोमय जीवन जी रहे हैं और ८० साल की उम्र में भी जवान की तरह उत्साह से जीवदया के अनेकविध कार्य कर रहे हैं यह सब गुरु भगवंत की प्रेरणा से ली हुई जीवदया की उपरोक्त प्रतिज्ञा का ही चमत्कार है !.... पालनपुर के चिकित्सक डो. चंपकलाल ठक्करने वि.सं. २०३२ में जब चीमनगढ के उपरोक्त सुश्रावक श्री बापुलालभाई मोहनलाल शाह की बीमारी को 'असाध्य' घोषित कर दी तब वे डीसा में बिराजमान व्याख्यान वाचस्पति प.पू.आ.भ. श्रीमद् विजयरामचंद्रसूरीश्वरजी म. सा. एवं वर्धमान तप की २८९ ओली के बेजोड़ तपस्वी प.पू. आ. भ. श्रीमद् विजयराजतिलकसूरीश्वरजी म.सा. के पास गये एवं पूज्यश्री को गद्गद हृदय से प्रार्थना की कि मुझे होस्पीटलमें बालमरण से मरना नहीं है, मैंने
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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