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________________ २७० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ दो बार शत्रुजय महातीर्थ की ९९ यात्राएँ एवं छ'री' पालक संघ द्वारा पालिताना की यात्रा की है। पता : मीठुभाई वेलजी गडा मु. पो. नाना रतडीया ता. मांडवी-कच्छ (गुजरात) पिन : ३७०४६५ (५) जामनगर के पास रावलसर गाँव में मगनलालभाई जीवराज (उ.व. ७७) नाम के प्रज्ञाचक्षु श्रावक थे । ९ साल पूर्व उनके साथ हमारी मुलाकात हुई थी । बाल्यवय में चेचक रोग के कारण दोनों आँखों की रोशनी नष्ट हुई थी फिर भी सुन-सुनकर उन्होंने पाँच प्रतिक्रमण और भक्तामर स्तोत्रादि कंठस्य कर लिया था । प्रतिदिन सुबह-शाम दोनों टाईम लकड़ी के सहारे जिनमंदिर में जाकर सुस्पष्ट स्वरसे विधिपूर्वक चैत्यवंदन करते थे । - "दृष्टि के अभावमें में भले प्रभुजी का दर्शन नहीं कर सकता हूँ लेकिन परमात्मा की अमीदृष्टि मुझ पर पड़ेगी तो भी मेरा बेड़ा पार हो जायेगा, इसीलिए हररोज उभयकाल जिनालय में आता हूँ" यह थी उनकी अनुमोदनीय श्रद्धा और निष्ठा । ७ साल पूर्व ही उनका स्वर्गवास हुआ है। नि:स्पृह कच्छी विधिकार त्रिपुटी (१) बंकीमचंद्रभाई केशवजी शाह (२) नरेन्द्र भाई रामजी नंदु (३) केशवजीभाई धारसीं गड़ा ये तीनों कच्छी विधिकार अंजनशलाका - प्रतिष्ठा आदि एवं अन्य महापूजनों के विधि-विधान शुद्ध शास्त्रोक्त विधि के अनुसार कराते हैं । तीनों विधिकार यातायात के किराये के सिवाय कुछ भी राशि या भेंट का स्वीकार नहीं करते । तीनों नवकार महामंत्र के विशिष्ट आराधक हैं। नरेन्द्रभाई और केशवजीभाई हमेशा एकाशन ही करते हैं । भारतभर में से अनेक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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