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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २४३ हररोज श्री सिद्धचक्र पूजन करनेवाले, प्रतिदिन कम से कम बिआसन का पच्चक्खाण करनेवाले, करीब ४ विगइयों के त्यागी, श्रीमंत होते हुए भी सादगी प्रिय, उभय काल प्रतिक्रमण आदि श्रावक के आचारों का अच्छी तरह से पालन करनेवाले श्री हीराभाई कई वर्षों से अहमदाबाद में श्री गिरधरनगर श्वे.मू.पू. तपागच्छ जैन संघ के अध्यक्ष के रूपमें संघ का संचालन सुचारुरूपसे करते हुए लोगों के अत्यंत आदर के पात्र बने हुए हैं। 'जिनभक्ति और जीवमैत्री यह दो, संसार सागर को तैरने के लिए अद्भुत तुम्बे (काष्ठपात्र) हैं' यह उनके वार्तालाप एवं आचरण का मुख्य विषय होता है। बीमार साधु-साध्वीजी भगवंतों की वैयावच्च के लिए उन्होंने अपना एक मकान अलग ही रखा है और उसमें प्रायः हमेशा किसी भी समुदाय के बीमार साध्वीजी भगवंतों को विज्ञप्ति पूर्वक स्थिरता करवाकर उनकी अनुमोदनीय वैयावच्च करते-करवाते हैं । गच्छ या समुदाय के भेदभाव बिना वे हरेक साधु-साध्वीजी . भगवंतों की सुंदर भक्ति करते हैं, । हीरालालभाई के विशिष्ट नेतृत्व से श्री गिरधरनगर संघमें अत्यंत ऐक्यभावना है । मतभेद या मनभेद का नामोनिशान नहीं है। _ वि.सं. २०५१ में गच्छाधिपति प.पू.आ.भ. श्री विजय जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. आदि मुनिवर एवं जिनको भी शास्त्राभ्यास करना हो ऐसे अलग-अलग साध्वीसमूह के करीब १२५ जितने साध्वीजी भगवंतों का चातुर्मास गिरधरनगर श्री संघने करवाया था, तब विद्वान पू. गणिवर्य श्री अभयशेखरविजयजी म.सा. ३ घंटे तक अलग अलग तीन विषयों का सुन्दर अध्ययन करवाते थे । गिरधरनगर से शंखेश्वरजी महातीर्थ एवं गिरनारजी महातीर्थ के छरी पालक संघ भी निकले थे। प्रायः प्रत्येक चातुर्मास में अत्यंत अनुमोदनीय आराधनाएँ श्री गिरधरनगर संघमें होती हैं । किसी भी जैन साधु-साध्वीजी भगवंत की नि:शुल्क चिकित्सा करने की शर्त से वहाँ की चत्रभुज होस्पीटल में गिरघरनगर जैन संघने ११ लाख रूपये प्रदान किये हैं। यह सब मुख्यतः 'यथा राजा तथा प्रजा' उक्ति के अनुसार संघ प्रमुख श्राद्धवर्य श्री हीरालालभाई की
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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