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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ बिहार में ४ डकैतियों ने चप्पु दिखाकर उनसे ६५० रूपये लूट लिये थे । मध्यप्रदेश के आदिवासी विस्तारमें उनकी पीटाई भी हुई थी फिर भी वे अपने संकल्प में अडिग रहे थे । इ.स. १९९७ में पदयात्रा पूर्ण होने के बाद वे भरतपुर वापिस लोटकर अपने खेत के मकान में वानप्रस्थाश्रमी की तरह जीना चाहते थे । शंखेश्वर में अनुमोदना समारोह में पधारने के लिए उनको निमंत्रण . पत्र भेजा गया था एवं प्रस्तुत किताब का दूसरा भाग भी भेजा गया था मगर उनके परिवार की और से कुछ प्रत्युत्तर नहीं मिल सका था । गिरनार में रामदयालभाई से संप्राप्त तस्वीर पेज नं. 24 के सामने प्रकाशित की गयी है। पत्ता : रामदयाल नेमिचंदजी जैन इन्द्र कोलोनी बस स्टेन्ड के पासमें मु. पो. जि. भरतपुर (राजस्थान) पिन : ३२१००१ | श्री सिद्धाचलजी महातीर्थ की ४८ बार ९९ यात्रा । करनेवाले भी रतिलालभाई जीवराजभाई सेठ इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ९९ पूर्व ( १ पूर्व = ७० लाख ५६ हजार करोड़) बार श्री सिद्धाचलजी महातीर्थ के उपर पधारे थे । इस के आंशिक अनुकरण स्वरूप में प्रति वर्ष हजारों भावुक आराधक व्यक्तिगत रूप से या विविध संघों में शामिल होकर इस गिरिराज की ९९ यात्रा विधिपूर्वक करके अपनी आत्मा को धन्य मानते हैं । कुछ बुझुर्ग आराधक प्रतिदिन गिरिराज के उपर चढने की अशकित के कारण चातुर्मास में या शेषकाल में गिरिराज की तलहटी की ९९ यात्रा विधिपूर्वक करते हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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