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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २२९ । १० वर्षमै ५५ हजार कि.मी. के प्रवास द्वारा । १०५ भारतभर के जैन तीर्थों की पदयात्रा करनेवाले श्री रामदयाल नेमिचंदजी जैन समग्र विश्वमें मनुष्य मनुष्यका दुश्मन बन रहा है और सभी अपने अपने लौकिक स्वार्थ की साधना में व्यस्त हैं तब किसी समृद्ध परिवार का ५५ वर्ष की उम्र का प्रौढ आदमी समग्र भारत की पदयात्रा के लिए प्रयाण करे और वह भी तीर्थयात्रा के साथ साथ समग्र मानव समाज में मैत्रीभावना के विकास की भावना के साथ !... यह बात शायद हास्यास्पद या असंभव सी लगती होगी, मगर यह वास्तविक हकीकत है कि श्री रामदयाल नेमिचंदजी जैन नाम के ५५ वर्षीय सुश्रावक राजस्थान में आयी हुई अपनी जन्मभूमि-भरतपुर से दि. १६-११-८७ को मंगल प्रयाण करके उपरोक्त भावनाके साथ तामिलनाडु, कर्णाटक, ओरिस्सा, आंध्र, पोंडिचेरी, कन्याकुमारी, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, आसाम आदि की पदयात्रा करके, वि.सं.२०५१ में सौराष्ट्र के गिरनार जी महातीर्थ में सर्वप्रथम बार आयोजित सामूहिक ९९ यात्रा की पूर्णाहुति के प्रसंग पर फाल्गुन महिनेमें हमको मिले, तब उन्होंने ८ साल में ४४ हजार कि.मी. की पदयात्रा द्वारा २५० तीर्थों की यात्रा पूर्ण की थी.... उनके कहने के मुताबिक १० साल में कुल ५५ हजार कि.मी. के पदयात्रा द्वारा समग्र भारत के जैन तीर्थों की यात्रा करने की उनकी भावना थी जो अब पूर्ण हो चुकी होगी । 'गुजरात में थरा के पास आया हुआ रूनी तीर्थ चमत्कारिक है' ऐसा उन्होंने कहा था । वे हररोज करीब २५ कि.मी. जितना चलते थे । एक ही टाईम भोजन करते थे। इसके सिवाय एक या दो बार चाय पीते थे, लेकिन होटल की चाय कभी भी नहीं पीते थे। जमीकंद एवं बाजारू चीजों का त्याग है । प्रतिदिन जिनपूजा करते हैं। नवकार महामंत्र के प्रति उनकी अनन्य आस्था है। कुछ साल पूर्व उन्होंने समेतशिखरजी महातीर्थ में कुछ नियम पूर्वक विधिवत् १ लाख नवकार महामंत्र के जप की आराधना की थी। उसमें कुछ क्षुद्र उपद्रव होने पर भी वे अडिग रहे थे, तब वहाँ के अधिष्टायक श्री भोमियाजी देव ने उनको दर्शन दिये थे । उनकी प्रेरणा
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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