SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ _ "सूरत में अडाजण पाटिया चार रस्ता के पास एक जिनालय की आवश्यकता होने से वहाँ जिनालय बनवाने का लाभ भी श्री देव-गुरु की कृपासे मुझे मिला है । वहाँ २१० किलोग्राम वजन के पंचधातु के श्री विमलनाथ भगवान की प्रतिष्ठा करवाने की भावना है। जिनभक्ति और उपकारी गुरु महाराज की प्रेरणा की फलश्रुति के रूप में मेरा मुख्य लक्ष्य निम्नोक्त तीन सद्गुणों को आत्मसात करने का है । (१) समता (२) एकाग्रता (३) जीवमैत्री । किसी जीवको यदि अन्य कुछ भी नहीं आता हो, मगर इन तीन सद्गुणों को अगर वह आत्मसात् कर ले तो उसका बेडा पार हुए बिना रहेगा नहीं । सभी जीव मूल स्वरूप की अपेक्षा से सिध्ध परमात्मा हैं, इसलिए किसी भी जीवकी अवगणनाआशातना नहीं हो उसके लिए में सजग रहता हूँ ...." ऐसा भी ज्ञात हुआ है कि 'जिनदासभाई' राधनपुर में रहते थे तब अपने पिताजी की प्रति मासिक तिथि के दिन समूह आयंबिल करवाते थे और आयंबिल के प्रत्येक तपस्वी को ४०-५० रूपयों के उपकरण प्रभावना के रूपमें देते थे। ऐसे उदारदिल, विशिष्ट प्रभुभक्त, सुश्रावकश्री के दृष्टांत में से प्रेरणा लेकर सभी जीव विशिष्ट प्रभुभक्ति द्वारा अपने जीवनको सफल बनायें यही शुभ भावना । ARESHERIRE গী ঘি মাখনায় মান্নান কী। करोड़ खमासमण देनेवाले भोगीलालभाई माणेकचंद महेता इन्सर्ट करके (कमीज को पेन्टमें डालकर) आधुनिक युवक शायद कभी जिनमंदिर में प्रवेश भी करता है तो वस्त्रों की इस्त्री खराब हो जाने के डरसे देवाधिदेव, त्रिलोकीनाथ अरिहंत परमात्मा के समक्ष भी झुके बिना अक्कड खड़ा रहता है।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy