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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ २१७ ७३ साल की उम्र में हृदय के दौरे के कारण बेहोश हो जाने से उनको अस्पताल में भरती किया गया था । ग्लुकोस एवं खून की बोतलें चालु थीं तब अचानक होश में आते ही उन्होंने इंजेक्शन की सूई अपने हाथ से बाहर निकाल दी और तुरंत सामायिक में बैठ गये !... देहाध्यास से कैसी मुक्तदशा !... चिकित्सक आदिने आश्चर्य व्यक्त किया तब उन्होंने कहा - 'देव - गुरु और धर्म की कृपा हार्ट एटेक के उपर भी ओटेक कर सकती है' !.. कैसी अद्भुत खुमारी और गौरव !!!... - पिछले ४० से अधिक वर्षों से व्यवसाय एवं जूते का भी त्याग करके विनम्र भावसे, अप्रमत्तता के साथ अद्भुत आराधनामय, अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय जीवन के द्वारा अनेकों के लिए आदर्श रूप बने हुए इन श्रावक शिरोमणि' के दृष्टांत से प्रेरणा लेकर हे धर्मप्रिय पाठक ! आप भी अपने जीवनमें अधिक से अधिक आराधकभाव के साथ तत्वत्रयी की उपासना एवं रत्नत्रयी की आराधना द्वारा देवदुर्लभ मानव भव को सार्थक बनायें यही शुभाभिलाषा । पुना (खड़की) जाने का प्रसंग हो तब 'श्रावक शिरोमणि' दलीचंदभाई का दर्शन करना चूकें नहीं । 44 पता : दलीचंदभाई धर्माजी जैन मंदिर के पास, खड़की (पूना) (महाराष्ट्र) पिन ४११००३ प्रतिदिन पंचकल्याणक की उजवणी एवं ५०० १०२ रूपयों के पुष्प आदिसे पाँच घंटे तक अद्भुत प्रभुभक्ति करनेवाले गिरीशभाई ताराचंद महेता जिस तरह राख जड़ होते हुए भी तथा प्रकार के स्वभाव से उसके अस्तित्वमात्र से कोठीमें रखे हुए धान्य में कीड़े उत्पन्न नहीं हो सकते..... जिस तरह हरीतकी (हरड़े) या परगोलक्स की गोली में कर्तृत्व भाव नहीं होते हुए भी उसके तथा विध स्वभाव के कारण उसका मनुष्य के पेट
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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