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________________ २१० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग एक समय था कि जब हीराचंदभाई अपने परिवार जनों को एवं समाज को परिग्रह कम करने के लिए कहते थे, तब कुछ लोग उनकी बातको मज़ाक समझकर टाल देते थे, मगर बाद में उनकी तपश्चर्याका ऐसा प्रभाव पड़ा कि परिवार जनोंने अपनी आवश्यकताओं में स्वयमेव अंकुश रखा इतना ही नहीं, अन्य परिचितों ने भी अपनी सुख-सुविधा को १० प्रतिशत कम किया । तपश्चर्या के द्वारा धर्म प्रभावना करने के साथमें हीराचंदभाई विश्वशांतिका संदेश भी देते रहे । कलिकट से तीर्थाधिराज शंत्रुजयकी यात्रा के लिए निकले हुए हीराचंदभाई ने अनेक गाँव- नगरों में तप की अनुमोदना का माहौल बनाया था । उग्र तप के प्रभाव से वे प्रगाढ विचार शून्यत्व एवं प्रशांतता का अनुभव करते हैं। जीवन में अनासक्ति का भाव सहज रूपसे आत्मसात् होता जा रहा है । २०७ वें उपवासमें हीराचंदभाई ने शत्रुंजय गिरिराज पर पैदल चढकर यात्रा की थी और दि. १६-१-९६ के दिन कच्छमें अचलगच्छाधिपति प.पू. आचार्य भगवंत श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से प्रस्थापित ७२ जिनालय तीर्थमें उनके पट्टधर प. पू. आ. श्री गुणोदयसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें २११ उपवासका पारणा किया था, तब हजारों लोगों ने वहाँ उपस्थित होकर महा तपस्वीकी भूरिशः हार्दिक अनुमोदना एवं अभिवंदना की थी । अदभुत शासन प्रभावना हुई थी । (डॉ. कुमारपालभाई देसाई लिखित 'इंट और इमारत ' कोलम - गुजरात समाचार दि. ४ - १ - ९६ से साभार उद्धृत) विशेष : २०५ वें उपवास के दिन हीराचंदभाई अहमदाबाद आये थे तब हमारी निश्रामें अहमदाबाद अचलगच्छ जैन संघ एवं अन्य संस्थाओंने उनका बहुमान किया था । उस वक्त करीब १५ मिनिट तक स्वस्थतासे खड़े खड़े वक्तव्य देते हुए हीराचंदभाई को देखकर सभी आश्चर्य चकित हो गये थे और 'आत्मा में अनंत शक्ति है' इस शास्त्र वचन की प्रतीति प्रत्यक्ष रूपसे सभीने की । शास्त्रोंमें आठ प्रकार के महापुरुषों को 'शासन प्रभावक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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