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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २०९ उपाधियाँ प्राप्त करनेवाले डॉ. सी.के. रामचंद्रन को उनके शारीरिक संशोधनं में काफी दिलचश्पी थी। __हीराचंदभाई कई वर्षों से सूर्यशक्ति के योग्य उपयोग के लिए संशोधन करते थे। भारत की 'सोलर एनर्जी सोसायटी' के सभ्य के रूपमें कई साल तक कार्य किया है । विशेष में समुद्र के पानीका उपयोग पीने के लिए किस तरह हो सके यह उनके संशोधन का मुख्य विषय रहा है। अध्यात्म और विज्ञान के विरल समन्वय के साथ हीराचंदभाई ने उग्र तपश्चर्याका प्रारंभ किया । पिछले २२ वर्षों से प्रत्येक पर्युषण पर्वमें ८ उपवास या उससे अधिक तपश्चर्या करनेवाले हीराचंदभाई ने तप के द्वारा मनोविजय प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया । प्रति सप्ताहमें डॉकटर उनकी संपूर्ण शारिरिक जाँच करते थे । कई बार एक्स-रे एवं स्क्रीनींग भी होता था । दिनमें वे ५०० ग्राम जितना उबाला हुआ पानी लेते थे। प्रारंभ में तो तपश्चर्या के साथ व्यवसाय करते हुए हीराचंदभाई को देखकर लोग आश्चर्य चकित हो जाते थे । कभी हीराचंदभाई सूर्यशक्ति और सूर्य चिकित्सा की बातें करते थे, तो कभी तप के अध्यात्मिक अनुभवों की बात करते थे । शुरु में डॉ. सी.के. रामचंद्रन के मनमें थोड़ी सी शंका बनी रहती थी, मगर उन्होंने देखा कि हीराचंदभाई की तपश्चर्या वैज्ञानिक संशोधन का विषय बन सकती है । इसलिए उन्होंने इस तपश्चर्या की वैज्ञानिक जाँच करने की संपूर्ण जिम्मेदारी ली । १११ उपवास का प्रारंभिक संकल्प पुरा होने के बाद भी हीराचंदभाई ने तपश्चर्या चालु ही रखी । तपश्चर्या के पूर्वमें ८९ किलो वजनवाले हिराचंदभाई के शरीर का वजन १५० उपवास के बाद ५९ किलो हो गया था । प्रति सप्ताह करीब डेढ किलो वजन कम होता जा रहा था । फिर भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान . को विस्मय मुग्ध बनाने वाले इस तपस्वी की उग्र तपश्चर्या चालु ही रही। तपके प्रभावसे उनकी संकल्प शक्ति प्रबल होती गयी है । आज वे सर्व चिंताओंसे मुक्त हैं । उनका कहना है कि मनुष्य सूर्य के पास से उर्जा प्राप्त करके आहार के बिना भी दीर्घ समय तक जिन्दा रह सकता है। बहुरत्ना वसुंधरा - २-14
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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