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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २० ९८ श्री ऋषिमंडल महास्तोत्र के विशिष्ट साधक कांतिलालभाई केशवलाल संघवी विशिष्ट कक्षा के साधक महापुरुषकी कृपासे संप्राप्त मार्गदर्शन के मुताबिक जब कोई श्रध्धालु श्रावक भी विधि पूर्वक अखंड साधना करते हैं तब वे साधना मार्गमें कैसी अद्भुत सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं यह हम निम्नोक्त दृष्टांत में देखेंगे। मूलत : गुजरातमें वीरमगाम तहसील के मांडल गाँव के निवासी किन्तु पिछले २१ वर्षों से सुरेन्द्रनगर में रहते हुए सुश्रावक श्री कांतिलालभाई केशवलाल संघवी (उ.व. ६३) जब २८ सालकी उम्र के थे तब उनके घर से स्वयमेव कभी कभी सुगंध का उद्भव होता था । इस विषयमें मार्गदर्शन लेने के लिए वे उस वक्त वहाँ विद्यमान पू. मुनिराज श्री सुबोधविजयजी म.सा. (भाभरवाले पू. आ. श्री शांतिचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय वाले) के पास गये । वे अच्छे साधक थे। उन्होंने कुछ समय तक आँखें बंद की, बाद में कहा कि 'ऋषिमंडल स्तोत्र की आराधना करो' । - उसके बाद कांतिलालभाई ने उनके मार्गदर्शन के मुताबिक ८ महिनों तक रात्रि भोजन त्याग इत्यादि करीब २० जितने नियमों की मर्यादा का पालन करते हुए निश्चित स्थान एवं निश्चितं समय में अखंडित रूपसे श्री ऋषिमंडल महास्तोत्र (१०२ श्लोक) और उसके मूल मंत्रकी साधना की । उस साधना के दौरान उनको चलायमान करने के लिए कई प्रकार के प्रतिकूल एवं अनुकूल उपसर्ग हुए । कभी शरीरमें भयंकर दाह होता था तो कभी उनकी चारों ओर आग की ज्वालाएँ उत्पन्न हो जाती थीं। कभी पूरे शरीर पर अजगर लिपट जाता था तो कभी तीक्ष्ण भाले अपनी ओर जोरसे आते हुए दिखाई पड़ते । कभी देव-देवीओं के नाटक और नृत्य भी दिखाई देते थे । लेकिन म.सा. ने उनको पहले से ही कह दिया था कि इस प्रकार के उपसर्ग होंगे मगर तुम जरा भी डरना नहीं और चलायमान नहीं होना : इसलिए वे जरा भी डरे बिना साधनामें लीन रहते थे । फलत : श्री ऋषिमंडल महास्तोत्र में निर्देश
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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