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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ १८५ अनेक मुमुक्षुओं को एवं उनके माता-पिताओं को उन्होंने समेतशिखरजी आदि महातीर्थों की यात्रा करवाने का महान लाभ भी लिया है। __ वि.सं. २०३७में तपस्वीरत्न (हाल अचलगच्छाधिपति) प.पू.आ.भ. श्री गुणोदयसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रामें १०८ जिन बिम्बों की अंजनशलाका कच्छ-मोट आसंबीआ गाँवमें करवाने का अपूर्व लाभ उन्होंने लिया था । उनमेंसे अनेक जिनबिम्ब गुजरात, मुंबई एवं अन्य क्षेत्रों में प्रतिष्ठित हुए हैं । बाकी के जिनबिम्ब मोटा आसंबीआ के जिनालयमें बिराजमान हैं, उन सभी जिन बिम्बों की प्रक्षाल एवं नवांगी पूजा वे स्वयं प्रतिदिन करते हैं। शामजीभाई के सुपुत्र व्यवसाय हेतु मुंबई-मुलुन्डमें रहते हैं, मगर वे स्वयं पिछले कई वर्षों से आराधना के हेतु से कच्छमें ही रहते हैं । हररोज प्रातः ६ बजे से लेकर दोपहर को २ बजे तक वे प्रायः जिन मन्दिरमें ही होते हैं। प्रक्षाल, पूजा, चैत्यवंदन, जप, आरती आदि द्वारा प्रभुभक्ति करते हैं। जिनवाणी श्रवण का योग होता है तो बीचमें १ घंटे के लिए उपाश्रयमें जाते हैं, अन्यथा मंदिरमें ही विविध प्रकार से प्रभुभक्तिमें लीन रहते हैं। जीव रक्षाके लिए चातुर्मासमें अपना गाँव छोड़कर पास के गाँवमें भी नहीं जाते । अपने गाँवमें भी अपने घरसे लेकर जिन मन्दिर-उपाश्रय की गली छोड़कर दूसरी गलीमें भी नही जाते ! नीची दृष्टि रखकर, ईर्या समिति का पालन करते हुए गज-गति से धीरता पूर्वक जिनालय या उपाश्रय में जाते हुए उनको देखना भी आनंदप्रद होता है। बोलने का प्रसंग आता है तब मुँह के आगे रुमाल (वस्त्रांचल) रखकर भाषा समिति के उपयोग पूर्वक अनिवार्य हो इतना ही बोलते हैं। व्याख्यान के समयमें आँखें बंद करके अत्यंत एकाग्रता और भावपूर्वक एक एक शब्द का पान करते हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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