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________________ १६६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग उनके देह को पालखीमें बिराजमान किया गया । अंतिमयात्रामें हजारों की संख्या में दूर- सुदूर से लोग उमड़े थे । लोग एक और देवजीभाई के पार्थिव देह के ऊपर छायी हुई सौम्यता और कांति को देखकर चकित रह जाते थे तो दूसरी ओर ऐसे प्रसंगमें भी नानजीभाई के चेहरे पर व्याप्त साहजिकता और स्थितप्रज्ञता को देखकर आश्चर्यमुग्ध हो जाते थे । शास्त्र निर्दिष्ट सम्यग्दृष्टि जीवके पाँचों लक्षण शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्तिक्य इस बंधु युगल के जीवनमें अच्छी तरह आत्मसात् हुए दृष्टि गोचर होते हैं । इतना ही नहीं किन्तु गंभीरता रूप, सौम्यप्रकृति, लोकप्रियता, अक्रूरता, पापभीरूता, सरलता, दाक्षिण्य, लज्जा, दया, मध्यस्थ सौम्य दृष्टि, गुणानुराग, सत्कथाप्रियता, धर्मनिष्ठ परिवार, दीर्घदर्शिता, विशेषज्ञता, वृद्धानुसारिता, विनय, कृतज्ञता, परोपकार परायणता और लब्ध लक्ष्यता, श्रावक के इन २१ गुणों से अलंकृत आदर्श श्रावकता का प्रत्यक्ष दृष्टांत यह बंधु युगल है । नवकार, नवपद, नवतत्त्व, नवनिधि इत्यादिमें रहा हुआ ९ का अंक अक्षय अंक के रूपमें सुप्रसिद्ध है । देवजीभाई की आत्मा भी अल्प समयमें ही अखंड - अक्षय ऐसे मुक्ति सुख की भोक्ता बनेगी ऐसा संकेत उनके देह विलय के दिन से भी निम्नोक्त प्रकारसे मिलता है । (१) दि. २५ + ५ + १९९५ = २०२५ = ९ (२) सं. २०५१ वैशाख कृष्णा १२ = २०५१ + ७ + १२ = २०७० = ९ योगानुयोग महाप्रयाण के लिए दिन भी कैसा सुंदर संप्राप्त हुआ !!! इस बंधु युगल को उदार, दानवीर, धर्मात्मा, सज्जन शिरोमणि, श्रावक श्रेष्ठ इत्यादि रूपमें तो बहुत लोग पहचानते हैं, मगर इन सभी सद्गुणों का मूल तो है उनकी आत्मनिष्ठता में, जिसे बहुत कम लोग पहचानते होगें । क्योंकि आत्मश्लाघा या आडंबर का अंश भी उनमें नहीं है । नामना की कामना या प्रसिद्धि के व्यामोहसे वे सदा दूर ही रहे हैं इसके उदाहरण रूपमें हम यहाँ थोड़ी सी घटनाओंको संक्षेपमें देखेंगे । 1 (१) वि. सं. २०५१ में हमारी निश्रामें गिरनारजी महातीर्थ की
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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