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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ १६५ रखकर (बिना बताये) चले नहीं जाना !" ... और सचमुच ऐसा ही हुआ। जैसे भगवान श्री महावीर स्वामीने अपने परम विनीत शिष्य श्री गौतम स्वामी गणधर भगवंत को अपने निर्वाण समयमें देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के बहाने से अपने से दूर भेज दिया था, उसी तरह देवजीभाई ने भी अपने देहविलय से कुछ क्षण पूर्व ही नानजीभाई को जिनालय में जाने की सूचना दे दी थी !... .. देहविलय के दिन सुबह ९ बजे वे अपने मकान के उपरवाले कक्षमें गये और पलंग के उपर बायी करवटसे लेटे तब नानजीभाई को ऐसा ही लगा कि ज्येष्ठ बंधु आराम कर रहे हैं । थोड़ी देर के बाद उन्होंने पूछा कि -'सेठ ! मन्दिर-उपाश्रयमें चलेंगे ? तब देवजीभाईने कहा - "आज तुम जाकर आओ, मैं यहीं हूँ।" नानजीभाई को लगा कि सविशेष अंतर्मुखता के कारण ऐसा कहते होगें, इसलिए वे जयेष्ठ बंधु की सूचना अनुसार नीचे उतरे । लेकिन नीचे उतरने के बाद तुरंत उन्हें आभास हुआ कि, 'ऊपर जाने जैसा है।' मगर बड़े भाई की विश्रांति या समाधिमें विक्षेप न हो ऐसी भावना से वे नीचे ही रहे । करीब १०॥ बजे वे पुनः ऊपर गये तब देखा कि ज्येष्ठ बंधु कायोत्सर्ग मुद्रामें पलंग में लेटे हुए थे। इसलिए वे थोड़ी देर तक चूपचाप बैठे रहे ; लेकिन थोड़ी देर के बाद उनको जगाने के लिए थोड़ा प्रयत्न किया तब पता चला कि ज्येष्ठ बंधु की आत्मा इस देह मंदिर में नहीं है। तुरंत डोक्टर को बुलाया गया। डोक्टरने घोषित किया कि - 'सेठजी का देहावसान हो गया है ' । नानजीभाई ने देखा कि पास के कक्षमें जहाँ प्रभुजी को पधराये गये थे, उसका दरवाजा पहले बंद था लेकिन अब वह खुल्ला था। इससे मालुम हुआ कि बिदाई से पहले अंत समयमें भी प्रभु प्रार्थनादि करने के बाद ही योगी की तरह उन्होंने स्वेच्छा से समाधि अवस्थामें देहत्याग किया था। अंतिम समय की वेदना का एक भी चिन्ह उनके शरीर पर या शय्या पर दृष्टि गोचर नहीं होता था। हाथ-पैर कायोत्सर्ग मुद्रामें व्यवस्थित थे। चेहरे पर अपूर्व सौम्यता और तेज व्याप्त था । मानो अभी आँखें खोलकर कुछ बोलेंगे ऐसा प्रतीत होता था। __इस तरह उन्होंने जीवनमें शांति, समता और समाधि भावको आत्मसात् किया था इसलिए अंतिम समयमें भी समाधिभाव रह सका ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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