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________________ १६० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ इतने सुविशुद्ध हो गये कि दूसरे ही दिन उस युवकने धर्मपत्नी के साथ म.सा. के पास आकर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रतका स्वेच्छा से सहर्ष स्वीकार कर लिया !! इस तरह शादी की प्रथम रात्रि से ही आजीवन ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करनेवाले इस दंपतीकी बात सुनकर हमें सुप्रसिद्ध विजय सेठ और विजया सेठानी की याद सहजता से आये बिना नहीं रहती। आजकल टी.वी. विडीयो के युगमें, मोहमयी मुंबई नगरीमें रहकर, भर युवावस्थामें शादीकी प्रथम रात्रि से लेकर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना कितना कठीन है । लेकिन सत्संग और भावोल्लास पूर्वक की गयी जिनपूजा के अचिंत्य प्रभावसे इस युवक के जीवनमें ऐसे चमत्कारका सर्जन कर दिया है, यह वास्तविकता है । ' इस युवक के बड़े भाई भी अत्यंत पापभीरू हैं । व्यापार धंधे में वे अनीति जरा भी नहीं करते हैं । 'इतनी किंमतमें यह माल लाया हूँ और इतनी किंमत में बेच रहा हूँ' इस तरह वे ग्राहक को स्पष्ट निवेदन कर देते हैं । कारकून से लेकर मंत्रीमंडल तक चारों ओर व्याप्त भ्रष्टाचार के इस जमाने में नीति और प्रामाणिकता से जीवन जीने वाले ऐसे सज्जन सचमुच धन्यवाद के पात्र हैं, अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय भी हैं । (उपरोक्त प. पू. पंन्यास श्री जगवल्लभविजयजी म.सा. (हाल आचार्य श्री ) के श्रीमुख से सुना हुआ यह दृष्टांत यहाँ पर प्रस्तुत किया गया है । नामना की कामना से दूर रहेने की उस युवककी भावना के मुताबिक यहाँ पर उसका नाम और पता प्रकाशित नहीं किया गया है ।) ९० अध्यात्मनिष्ठ बंधुयुगल देवजीभाई और नानजीभाई जिन के अद्भुत जीवन प्रसंग एवं सद्भूत गुण समूह का वर्णन करने के लिए एक स्वतंत्र किताब लिखी जाय तो भी संपूर्ण वर्णन करना असंभव सा प्रतीत होता है और जो प्रसिद्धि से सदा दूर रहना ही पसंद ....
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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