SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ १५९ • आया और कहने लगा म. सा. ! आपने मेरे भाई को तपश्चर्या करवाई उससे वह मरणासन्न हो गया है। तो अब आप ही उसे बचाईये ।' जरा भी नाराज हुए बिना म. सा. ने उसे प्रेम पूर्वक अपने पास बिठाकर वात्सल्यपूर्ण हितशिक्षा दी । बादमें उसके साथ घर जाकर उसके तपस्वी बड़े भाई को वासक्षेप डालकर मांगलिक सुनाया। बड़ा भाई अल्प समय में ही स्वस्थ हो गया । म.सा. के वात्सल्यपूर्ण वाणी व्यवहार से नास्तिक कहलाता हुआ वह युवक उनके प्रति आकर्षित हुआ और प्रतिदिन उनका सत्संग करने के लिए आने लगा । परिणामतः केवल १५ दिनोंमें ही वह प्रतिदिन जिनपूजा करने लगा और माता- पिताको प्रणाम भी करने लगा !... यह देखकर उसकी माँ के मुखमें से उद्गार निकल गये - ' म. सा. ! मेरे जंगली पशु जैसे बेटे को आपने सच्चा जैन मानव बना दिया है, आप के उपकार को कदापि नहीं भूलूँगी' !... सचमुच, सत्संग का प्रभाव कितना अद्भुत होता है !... कुछ समय बाद उस युवक की शादी हुई। 'जब तक मेरे उपकारी गुरु महाराज का दर्शन नहीं होगा तब तक मैं ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा' ऐसी भावना से वह युवक शादी की प्रथम रात्रि से ही ब्रह्मचर्य का पालन करने लगा । करीब १ महिने के बाद म. सा. वहाँ पधारे। भावोल्लास पूर्वक उसने म. सा. के दर्शन - वंदन किये । बादमें उसने भद्रिक भाव से म. सा. को कहा कि ‘म.सा. ! आप के कहेनेसे मैं हररोज जिनपूजा और माता-पिता को प्रणाम करता हूँ, मगर कौन जाने क्यों मुझे अभी तक जैसे भाव आने चाहिए वैसे नहीं आते हैं और इसीलिए जैसा चाहिए वैसा आनंद का अनुभव भी नहीं होता है । ' म.सा. ने कहा 'जैसे मैं कहूँ वैसा करेने के लिए तो तू तैयार हैन ? मेरे प्रति तो तेरी श्रद्धा परिपूर्ण है न ?'.... युवक के 'हाँ' कहने पर म.सा. ने तुरंत कहा - " तो अब मैं तुझे कहता हूँ कि तू अब से हररोज 'भावपूर्वक' पूजा कर ।" .. और दूसरे ही दिन उस युवकने अत्यंत भावोल्लास पूर्वक जिनपूजा की !... भावोल्लासपूर्वक की गयी जिनपूजा से ऐसा चमत्कार घटित हुआ कि उसका शब्दोंमें संपूर्ण वर्णन करना शक्य नहीं है । उसके अध्यवसाय
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy