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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ७८ सोमपुरा मयूरभाई की आराधना करीब ३ साल पूर्व उत्तर गुजरातमें बनासकांठा जिले के भोरोल तीर्थमें आबालब्रह्मचारी २२ वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान आदि जिनबिम्बों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा का भव्य महोत्सव सुविशाल गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय महोदयसूरीश्वरजी म.सा. आदि अनेक पदस्थ पूज्यों की निश्रामें आयोजित हुआ था । ___ इस तीर्थमें काम करते हुए सोमपुरा मयूरभाई दीर्घ समय से नवपदजी की ओलीके दिनोंमें ९ आयंबिल पूर्वक आराधना करते हैं । पर्युषण के दौरान उन्होंने अठ्ठाई तप भी किया है । वे हररोज जिनपूजा करते हैं और प्रतिदिन शामको आरती के समयमें अचूक उपस्थित रहकर प्रभुभक्तिका लाभ लेते हैं। आजकल कई गाँवोंमें प्रभुजी की आरती उतारने में पूजारी के सिवाय किसी को खास रस नहीं दिखाई देता है, तब यह दृष्टांत खास विचारने लायक है। ७९ | प्रातादन १ । प्रतिदिन १०८ लोगस्स आदिकी आराधना करती हुई कु. मीनाबहन जगजीवनभाई ( महाराष्ट्रीयन) महाराष्ट्रमें थाणा जिले के शिरसाड़ गाँवमें जैनेतर कुलोत्पन्न कु. मीनाबेन (उ. व. १७) को प्रारब्ध योगसे ५ वर्ष की बाल्य वय से ही गृहकार्यों में जुड़ना पड़ा । मगर ८ सालके बाद उसका भाग्योदय हुआ । ९ सालकी उम्रमें वह (मुंबई) शायनमें रहते हुए धर्म संस्कार संपन्न कच्छी जैन जगजीवनभाई शाह के परिवारमें गृहकार्य करती हुई अपने विनीत और शालीन स्वभाव तथा अपने कर्तव्य की लगन के कारण छोटे बड़े सभी की प्रीतिपात्र बन गयी । फलतः सुश्राविका पुष्पाबहन और जगजीवनभाई
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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