SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग १ व्यवहार करते हैं, मगर पुरुषोत्तमभाई अपने सेलून के सामने से कोई भी साधु-साध्वीजी गुजरते हैं तब आदरपूर्वक हाथ जोड़कर " मत्थभेण वंदामि, साहब, सुखशातामें हो न ?" ऐसा बोलना चूकते नहीं हैं । हमारे साथ वार्तालाप के दौरान उनके मुख से ऐसे उद्गार निकल पड़े कि, "महाराज साहब ! पूर्व जन्ममें मैंने कुलमद किया होगा, इसलिए आज नाई कुलमें जन्म पाया हूँ, मगर अब मुझे ऐसे आशीर्वाद प्रदान करो कि आगामी भवमें महाविदेह क्षेत्रमें साक्षात श्री सीमंधर स्वामी के पास जन्म पाकर, उनके वरद हस्तसे दीक्षा अंगीकार करूँ, क्योंकि साधुता के बिना उद्धार नहीं है । जिन शासन की सम्यक् आराधना किये बिना संसार सागर से निस्तार होना असंभव है । " पुरुषोत्तमभाई की वाणी में स्पष्ट रूपसे झलकता हुआ जिनशासन के प्रति अहोभाव, संसार के प्रति निर्वेदभाव एवं संयम के प्रति समर्पणभाव देखकर हमारा अंत:करण भी उनके प्रति अनुमोदना के भावसे गद्गद् हो गया। शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें वे पधारे थे । उनकी तस्वीर पेज नं. 15 के सामने प्रकाशित की गयी है । १४ पता : पुरुषोत्तमभाई कालीदास पारेख पारस हेयर आर्ट्स, इंडिया बैंक के सामने, रामनगर, साबरमती, अहमदाबाद (गुजरात) : ३८०००५. अजोड जीवदयाप्रेमी ठाकोर मंगाभाई काळाभाई भगत गुजरातमें सुरेन्द्रनगर जिले के पाटड़ी गाँवमें रहते हुए ठाकोर मंगाभाई को ५ साल की छोटी उम्र में अकेला छोड़कर उनके माता- पिताने परलोक के प्रति प्रयाण करदिया था । परिवार में उनका पालन-पोषण करनेवाला कोई न था । मगर निराधार के आधार रूप पड़ौसमें रहने वाले एक जैन परिवारने उसको अपने घरमें स्थान दिया और लालन-पालन करके बड़ा
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy