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________________ ४२ १३ पता : प्रो. के. डी. परमार श्रावक पोल, देरासर शेरी, मु.पो. जंबूसर, जि. भरुच, पिन ३९२१४० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ प 44 सेलून ( नाईकी दुकान) में भी देव - गुरुकी तस्वीरें रखनेवाले पुरुषोत्तमभाई कालीदास पारेख (नाई ) 'महाराज साहब ! मुझे ऐसे आशीर्वाद प्रदान करें कि जिससे इस भवमें ही मुझे शुद्ध समकित की प्राप्ति हो जाय एवं ५-७ भवोंमें ही जल्दी से जल्दी ८४ लाख के चक्कर से छुटकारा हो जाय और शीघ्र मुक्ति की प्राप्ति हो जाय" ये उद्गार किसी जैन कुलोत्पन्न श्रावक के मुखसे नहीं किन्तु साबरमतीमें नाईका व्यवसाय करनेवाले पुरुषोत्तमभाई के मुखसे हमको सुननेको मिले तब हमारे आश्चर्य एवं आनंदकी सीमा न रही। आज से करीब ४० साल पहले गुलाबचाचा एवं मणिचाचा के नामसे प्रसिद्ध सुश्रावक बाल कटवाने के लिए पुरुषोत्तमभाई की दुकान पर जाते थे। उनकी प्रेरणासे पुरुषोत्तमभाई ने उपाश्रयमें जाने की शुरुआत की । फलतः शासन सम्राट प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न प.पू. आ.भ. श्रीविजयउदयसूरीश्वरजी म.सा. एवं प.पू. आ.भ.श्री विजय मेरुप्रभसूरीश्वरजी म.सा. इत्यादि के चातुर्मासिक सत्संगसे पुरुषोत्तमभाई को जैन धर्म का रंग लगा जो उत्तरोत्तर सुदृढ़ होता चला । जिसके फल स्वरूप वे ३९ वर्षों से हररोज अष्टप्रकारी जिनपूजा करते हैं व्याख्यान - श्रवण करने का मौका मिलता है तो चुकते नहीं हैं । प्रतिमाह पाँच आयंबिल करते हैं । हररोज चौविहार (रात्रि भोजन का संपूर्ण त्याग) का पच्चक्खाण करते हैं । सामायिक प्रतिक्रमण करते हैं एवं पर्युषणमें ६४ प्रहरी पौषध करते हैं । पिछले ५ सालसे उपाश्रयमें ही सोते हैं । ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं । 1 1 पुरुषोत्तमभाई ने आज दिन तक ( १ ) चोसठ प्रहरी पौषध के
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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