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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ रहूँ, जिससे आगामी भवमें महाविदेह क्षेत्रमें श्रीसीमंधर स्वामी भगवंत के पास दीक्षा ले सकुं" इतना बोलते हुए उनकी आंखें आंसुओंसे व्याप्त हो चुकी थीं । जैन कुलमें जन्म पाने के बावजूद भी जैन साहित्य के पठन पाठन और सत्संग के प्रति अत्यंत उपेक्षा करनेवाली आत्माएँ शंकरभाई पटेल के इस दृष्टांत में से प्रेरणा लेकर अपने जीवनमें सम्यक्ज्ञान एवं सत्संग के प्रति सुरुचि संपन्न बनें यही मंगल भावना. पता : शंकरभाई भवानभाई पटेल मु.पो. खाखरेची, ता. मालिया मीयाणा, जि. राजकोट (गुजरात) १२ अध्यात्म परायण प्रोफेसर केसुभाई डी. परमार (क्षत्रिय) गुजरात राज्यमें भरुच जिलेके जंबूसर गाँवमें रहते हुए प्राध्यापक केसुभाई परमार को अध्यात्मयोगी प.पू. पंन्यास प्रवर श्रीभद्रंकरविजयजी म.सा. के सत्संगसे जैनधर्म का अनन्य कोटिका रंग लगा है । . हालमें वे कोलेजमें प्राध्यापक के रूपमें अध्यापन कार्यसे निवृत्त हुए हैं, मगर जब वे कोलेजमें पढाते थे तब भी धोती एवं उत्तरासंग पहनकर प्रतिदिन जिनपूजा करने में जरा भी संकोच का अनुभव नहीं करते थे, किन्तु अपूर्व आनंद एवं गौरव का अनुभव करते थे । प. पू. पन्यासजी महाराज के विशिष्ट कृपापात्र आराधक आत्माओं में प्रा. श्री केसुभाई परमार का नाम अग्रगण्य है । कौटुंबिक दायित्व को निभाते हुए भी वे पंन्यासजी महाराज की कृपा के बलसे ध्यान के द्वारा अंतरात्मामें लीन होकर अवर्णनीय आत्मानंदकी अनुभूति करते रहते हैं। प्रतिदिन सामायिक, प्रतिक्रमण, जिनपूजा, नवकार महामंत्र का जाप, घरमें एवं बाहर भी उबाले हुए अचित्त पानी का ही उपयोग इत्यादि
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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