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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ आदिका बहुत अध्ययन किया था । अनेक जैनेतर साधु संतों के परिचयमें आये थे, लेकिन कंचन कामिनी के सर्वथा त्यागी, आजीवन पादविहारी, पंचमहाव्रतधारी ऐसे जैन साधु साध्वीजी भगवंतों के तप त्याग एवं सदाचारमय जीवन को देखने के बाद शंकरभाई को अंत:स्फुरणा हुई कि सचमुच ऐसे तप त्यागमय धर्मसे ही शीघ्र मुक्ति पायी जा सकती है । इसलिए जैन धर्म के बारेमें सविशेष जानकारी प्राप्त करनेकी उनकी जिज्ञासा प्रबल बनती गयी । इस जिज्ञासा को तृप्त करने के लिए व्याख्यान श्रवणके सिवाय अहोरात्रिका अधिकांश समय वे जैनधर्म के पुस्तक पढनेमें बीताने लगे । प्रतिदिन १८ घंटों तक जैन साहित्य का पठन करने पर भी वे थकते नहीं थे। उपदेश प्रासाद भाग १ से ५, शारदा शिखर, इत्यादि कई बड़े बड़े पुस्तकों का उन्होंने पठन किया है । आज वे जैन धर्मके बारेमें घंटों तक लगातार वक्तव्य दे सकते हैं । अरबी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा भी वे जानते हैं । कुरानकी कई आयातें उनको कंठस्थ हैं। चातुर्मास के लिए कच्छ से मांडल की ओर विहार करने पर दि. १०-६-९६ के दिन खाखरेची गाँवमें शंकरभाई से भेंट हुई तब उन्होंने कुरान की कुछ आयातों को अर्थ के साथ सुनायी थी एवं जैन धर्म संबंधी अनेक दोहे गुजराती भाषामें अत्यंत भाव विभोर होकर उन्होंने सुनाये थे। शंकरभाई पटेल प्रतिदिन जिनमंदिर में जाकर प्रभुदर्शन करते हैं । साधु साध्वीजी भगवंतों को भावसे गोचरी बहोराते हैं । खाखरेची पधारने वाले साधु साध्वीजी भगवंतों को आसपास के गाँव तक पहुंचाने के लिए वे सेवा भावसे साथ में जाते हैं। "सचमुच, अगर मुझे जैन धर्मकी प्राप्ति छोटी उम्रमें हुई होती तो मैं संसार के चक्कर में पड़ता ही नहीं, दीक्षा ही ले लेता, क्योंकि संयम के बिना संसार सागर को तैरने का और कोई उपाय नहीं है । अब तो वृद्धावस्था के कारण दीक्षा नहीं ले सकता, मगर जीवन के अंतिम श्वासोच्छ्वास तक जैन साधु-साध्वीजी भगवंतों की सेवा करता
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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