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________________ ३६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ - - सत्संग के प्रभावसे लोहा सोना बना ! याने सोनी संजयभाई डाह्यालाल हररोज ३५०० लीटर जितने बिना छने हुए पानी को बाथमें भरकर उसमें स्नान करनेवाले श्रीमंत व्यक्ति, एक ही झटके में ऐसे, स्नानका परित्याग करके आज बाल्टीमें छने हुए मर्यादित जलको लेकर गाँवके बाहर खुल्ली जमीन पर स्नान करने के लिए जाते हैं, इतना ही नहीं परंतु दातून करने के बाद मुखशुद्धि के समय एक बूंद भी पानी गटरमें न जाय इसके लिए खास मकान अलग रखकर उसकी खुल्ली जमीनमें ही दातून करते हैं । मलशुद्धि के लिए भी संडाश का उपयोग न करते हुए २ कि.मी. चलकर गाँवके बाहर ही जाते हैं । क्वचित् रातको जरूरत पडे तो धातु के पात्रमें निबटकर गाँवके बाहर विसर्जन करते हैं !... ___अज्ञान दशामें अंडे इत्यादि अभक्ष्य का भक्षण, गर्भपात एवं खटमल इत्यादि जीवों की जान बुझकर हिंसा करनेवाले, आज बोध मिलते ही तुरंत इन सभी पापों को तिलांजलि देकर, सदगुरु के पास भवालोचना (प्रायश्चित्त ) स्वीकार कर, कंदमूल, रात्रिभोजन, द्विदल, वासी अचार इत्यादि अभक्ष्य एवं चाय सहित सभी व्यसनों के त्याग की प्रतिज्ञा लेकर, जीवदया के लक्ष्यपूर्वक अत्यंत सूक्ष्म यतनायुक्त जीवन जीते हैं ! व्यवसायमें कदम कदम पर झूठ बोलनेवाले एवं 'पैसा मेरा परमेश्वर और मैं पैसे का दास' जैसा केवल धनलक्षी जीवन जीनेवाले, आज व्यवसायमें जरासी भी अनीति नहीं करने का दृढ संकल्प करके, शाम को ५ बजे कितने भी ग्राहक हों तो भी दुकान बंद करके चौविहार (सायंकालीन भोजन) करने के लिए घर चले जाते हैं और सुबहमें लक्ष्मी पूजाके बदलेमें पंचासरा पार्श्वनाथ भगवंत की अष्टप्रकारी पूजा करने के बाद ही नवकारसी करते हैं ! सुखी बनने के लिए येन केन प्रकारेण धनसंग्रह को ही जीवनमंत्र
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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