SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० . बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ पौषध पारकर अस्पतालमें जाने की सलाह दी । मगर दृढतापूर्वक धर्मका पालन करने की भावनावाले डॉ. खानने कहा “बेटी के प्रारब्ध एवं नियति के अनुसार जो भी होनेवाला होगा उसको मैं या अन्य कोई भी रोक नहीं सकते, तो फिर उसके लिए ऐसे अनमोल पौषध व्रत का में कैसे त्याग करूँ ? आखिर श्रावकों ने आचार्य भगवंत को सारी बात सुनायी । पूज्य श्री ने डॉ. खान को बुलाकर कहा "महानुभाव । आपकी धर्मदृढता, श्रद्धा . एवं समझ सचमुच अत्यंत अनुमोदनीय है, लेकिन ऐसी स्थितिमें अगर आप अपनी बेटी के पास नहीं जायेंगे तो अज्ञानी लोगों द्वारा जैनधर्म की निंदा होने की संभावना है । अतः आज शामको जब पौषध का समय पूर्ण होता हो तब पौषध पार कर बेटीके पास जायें, यही समयोचित कर्तव्य है।" गुरु आज्ञाको शिरोमान्य करते हुए डो. खान शाम को पौषध पार कर सामायिक के वस्त्रों में ही अस्पतालमें पहुंचे । ८ दिनसे पौषध होने के कारण उन्होंने न तो स्नान किया था और न ही दाढी बनायी थी । उनकी ऐसी स्थिति देखकर परिचित डोक्टर मित्रोंने आश्चर्य के साथ पूछा 'यह क्या' ? डो. खानने नम्रता से कहा 'इसका रहस्य आपको अभी समझमें नहीं आयेगा, कभी मौका मिलेगा तब शांतिसे समझाऊँगा । फिर हाल तो मुझे इतना बता दो कि मेरी बीमार बेटी कहाँ है ? . आखिर उनको बीमार बेटी के कमरे में ले जाया गया । वहाँ उन्होंने अत्यंत भावपूर्वक श्रद्धा एवं एकाग्रता से नवकार महामंत्र का स्मरण करते हुए बेटी के मस्तक पर हाथ फिराया एवं कुछ ही क्षणों में सभीके आश्चर्य के बीच बेटीने आँखें खोली । कुछ ही देरमें स्वस्थ होकर चलने वह लगी। डोक्टर एवं परिचारिकाओं के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उनके हृदयमें भी जैन धर्म एवं नवकार महामंत्र के प्रति अत्यंत अहोभाव उत्पन्न हुआ। - कुछ देर बाद जेनीफरने पानी पीया एवं फिर केन्टीनमें जाकर चाय पीने का इच्छा को : टो. खान उसे केन्टीनमें ले गये एवं चाय मँगा
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy