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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ बादमें उसी श्रावक की प्रेरणासे डॉ. खान व्याख्यान वाचस्पति प.पू.आ.भ. श्री विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. के सत्संगमें आये । पूज्य श्री की हृदयस्पर्शी वाणी से उनके हृदयमें आज तक किये हुए जीवहिंसा आदि पापोंके प्रति तीव्र पश्चात्ताप का भाव उत्पन्न हुआ । उन्होंने फौरन शिकार आदि सात महाव्यसनों के त्याग की प्रतिज्ञा ले ली । पोल्ट्री फार्मका महा हिंसक व्यवसाय भी तुरंत बंद कर दिया, इतना ही नहीं किन्तु हरी वनस्पति एवं सचित्त पानी का भी आजीवन त्याग कर दिया। कंदमूल एवं रात्रिभोजन को हमेशा के लिए जलांजलि दे दी । हमेशा नवकारसी एवं चौविहार का प्रत्याख्यान लेने लगे । वे प्रायः तो एक ही बार भोजन करते हैं । रोटी दाल इत्यादि पाँच सादे द्रव्यों से अधिक द्रव्यों का उपयोग नहीं करते हैं । मांसाहार करनेवाले अपने जातिबंधुओं एवं रिस्तेदारों के घरका पानी भी नहीं पीते हैं । उनकी धर्मपत्नी डोक्टर उषाबेन एवं एक बेटा तथा तीन बेटियोंमें से कोई भी मांसाहार नहीं करते । डॉ. खान हर रविवार को एक सामायिक अचूक करते हैं । इस तरह उनको इस्लाम धर्म को छोड़कर जैन धर्मका पालन करते हुए देखकर आसपासमें रहनेवाले पठाणोंने बहुत विरोध किया एवं जैन साधुओं का परिचय न करने के लिए उन पर दबाव डाला । तब उन्होंने नम्रतापूर्वक अन्य किसी भी धर्म के साधु, पंन्यासी, फकीर, पादरी, इत्यादि से जैन साधुओं की पादविहारीता, निःस्पृहता, निष्परिग्रहिता, दयामयता, तपोमयता इत्यादि अनेक विशेषताओं का अत्यंत अहोभाव पूर्वक वर्णन करके उनको चुप कर दिया । .. कुछ साल पूर्व उन्होंने पर्युषण में पौषध के साथ १६ उपवास किये थे । तब आठवें उपवास के दिन उनको खबर मिली कि उनकी जेनीफर नामकी बेटी अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण से अहमदाबाद की वी. एस. अस्पतालमें बेहोश एवं गंभीर स्थिति में है । कड़ी परीक्षा की ऐसी क्षणोंमें भी डो. खान पौषध व्रतमें अडिग रहे एवं नवकार महामंत्रका स्मरण भावपूर्वक करने लगे। अन्य श्रावकों को इस बातकी खबर मिली । उन्होंने डॉ. खान को
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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