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________________ २६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ भद्रंकरविजयजी म.सा. का सत्संग लक्ष्मणभाई के जीवन विकासमें मुख्य निमित्त बना है । नव परिणीत दामाद की भक्ति सास जिस प्रकार करती है उससे भी विशिष्टतर साधर्मिक भक्ति के लिए लक्ष्मणभाई खास प्रसिद्ध हैं । किसी भी विशिष्ट सामूहिक धर्मानुष्ठानों में उपस्थित रहने का मौका मिलता है तब लक्ष्मणभाई सभी आराधकों को उबाला हुआ अचित्त जल ठंडा करके पिलाने का लाभ अचूक लेते हैं । सं. २०२८ में पालनपुर में ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में प.पू. आ.भ. श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. एवं प.पू. आ. भ. श्री विजयगुणरत्नसूरिश्वरजी म.सा. की निश्रामें ज्ञानसत्र (शिबिर) में २५० युवान शामिल थे । वाचनादाता पूज्यश्रीने सभी युवानों को उबाले हुए पानीको पीनेका महत्त्व समझाकर ज्ञानसत्र में ही उसका प्रयोग करने के लिए प्रेरणा दी । सभी युवक एक साथ कहने लगे कि 'ऐसी भयंकर गर्मीमें उबाला हुआ पानी कैसे पीया जा सकता है ?' तब लक्ष्मणभाई ने कहा 'आप सभी को बर्फसे भी अधिक ठंडा करके उबाला हुआ पानी पिलाने का उत्तरदायित्व मेरा होगा ।' फलतः पहले दिन १०० युवक तैयार हुए । लक्ष्मणभाई ने उबाले हुए पानीको अनेक बर्तनोंमे ठारकर, बार बार पानीको एक बर्तनमें से, दूसरे बर्तनमें डालकर ऐसा ठंडा बना दिया कि दूसरे दिन २५० युवक उबाले हुए पानी को पीने के लिए तैयार हो गये । स्वयं भी उबाला हुआ पानी ही पीते हैं एवं हाथ पैर धोने के लिए भी उबाले हुए पानीका ही उपयोग करते हैं । अपने परिचयमें आनेवाले सभीको छना हुआ और उबाला हुआ पानी पीने के लिए समझाते हैं । जोधपुरमें जो भी मुनिराज पधारते हैं, उनके बढे हुए नाखून काटनेकी भक्ति वे अचूक करते हैं एवं भावपूर्वक विज्ञप्ति करके अपने घर ले जाकर सुपात्र दानका भी लाभ अवश्य लेते हैं ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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