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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? रतनचन्दभाई दवा-दारु को देशनिकाला देकर आस्था के आधार पर 44 44 महामंत्र के जप में घंटों तक खो जाते, उस समय जो अनुभूति होती वह उन्हें अवर्णनीय लगती । 'नमो अरिहंताणं" और 'सर्वत्र सुखी भवतु लोकः" का जप थोड़े अधिक दिन तक चला और रतनचन्द के शरीर में, कैन्सर का कोई असर सोगन्ध खाने के लिए भी नहीं रहा । फिर तो फ्रूट और बाद में अनाज भी कैन्सर - ग्रस्त इस गले में से नीचे उतरने लगा। जिस 24 फरवरी को डॉक्टरों ने जीवन की अन्तिम रात बतायी थी, उससे ठीक दो महिने बाद जब रतनचन्द चलकर डॉ. भरुचा के पास पहुंचे, तब एक बार तो डॉक्टर को लगा कि यह क्या! रतनचन्द का प्रेत शरीर तो मेरे सामनें नहीं खड़ा है? उन्होंने एकाएक रोगी को कहा, "मेरे लिए यह पहला ही अनुभव है, जब इस प्रकार कोई रोगी श्मशानघाट जाकर यमराज के हाथ में ताली मारकर छुट गया हो ! तुम्हें कौन सी दवा लागु हुई? नाम तो बताओ, जिससे कैन्सर के बारे में हो रहे संशोधन सफल हो सकें?" रतनचन्द ने कहा, "यह अद्भुत शक्ति का चमत्कार है। रोग को मार भगाने हेतु जब औषधियों से भरा हिमालय हताश हदय से हार स्वीकार करता है, तब महामंत्र पर रखी गई आस्था आकर विजय का मार्ग जताती है। औषधि में भी शक्तिपात करने की महाशक्ति यदि किसी में है, तो वह आस्था के पास है। ऐसी आस्था से की गयी आराधना ने ही मुझे जीवन मौत के इस युद्ध में भारी विजय दिलायी है। अठारह लाख से भी ज्यादा सम्पत्ति एवं वर्षों का समय भी मेरे केन्सर को मिटाने को तो दूर रहा, उसे बढ़ने से भी न रोक सका। वहां एक पैसे का भी खर्च किये बिना एक रात में मैं जो रोगमुक्त बना हूँ, वह प्रभाव हमारे नवकार मंत्र एवं मेरे द्वारा की गई उसकी आस्थापूर्वक आराधना का है। " दवा एवं दवाखाने से सम्बंधित बात में ही श्वास लेने वाले डॉक्टर के लिए तो यह बात नयी ही नहीं, आश्चर्यकारी भी थी। अगोचर - अप्रत्यक्ष को श्रद्धा की नजर से नहीं देखने वालों के लिए यह सत्य घटना एक 70
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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