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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? की डाकण से मुक्त बने रतनचन्द कोई अलौकिक अनुभूति कर रहे थे। उनके शरीर में शक्ति नहीं होने के बावजूद मन में मजबूती, महासागर में ज्वार की तरह चढ़ गई थी। जीवन का अन्त सुधारने का उनका निर्णय अडिग एवं वीरता भरा था। किसी प्रकार की मांग या शर्त रखे बिना "नमो अरिहंताणं" और "सर्वत्र सुखी भवतु लोकः'' इन दो पदों की ध्वनि जैसे इनके श्वासोच्छ्वास के साथ बहने लगी। इन दो मंत्रों के जाप में जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गये वैसे-वैसे उनके आसपास कोई अद्भुत शान्ति बढ़ती गयी। जो शरीर बिस्तर में भी आराम नहीं मान रहा था, वह शरीर इस जाप की पलों में पीड़ा रहने के बावजूद वेदना के वेग को कम अनुभव करने लगा। रतनचन्द ने महामंत्र की चरण-शरण में इस प्रकार शरणागति स्वीकार की, कि वे स्थल-काल के भेद को भी भूल गये। जप करते-करते शाम हो गई। उसी प्रकार रात्री का भी आधा भाग बीत गया। मानो की रोगी के शरीर का सारा रोग एक साथ इकट्ठा होकर बाहर निकलना चाहता हो, उसी की प्रतीति करवाती एक जोरदार खून की उल्टी हुई, इस उल्टी के बाद रतनचन्द को एक अलग ही प्रकार की राहत महसूस हुई। इस उल्टी में मानो शरीर का समग्र कैन्सर बाहर निकल गया हो, ऐसा उन्हें लगा। ___रतनचन्द ने सुबह जल्दी कमरे का दरवाजा खोला तब बाहर चिंतित चेहरों की लाईन थी। उन्होंने रात को अनुभव की गई राहत की बात करके कुछ घन्टों बाद कहा कि "मुझे ऐसा लगता है कि, जो गला अब तक पानी की बुंद भी उतारने को तैयार नहीं था, वह अब गर्म दूध भी उतार लेगा। दूध का गिलास आया। रतनचन्दभाई महिनों के बाद गरम-दूध का गिलास गटक गये। सभी को आश्चर्य हुआ। श्मशान के दरवाजे से इस प्रकार जीवन के यौवन काल में प्रवेश करते हुए रोगी को देखकर सभी महामंत्र की अद्भुत शक्ति को भक्ति से प्रणाम करने लगे। 69
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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