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________________ जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? "इस भाई ने बाह्य विधियां तो बहुत की हैं, परन्तु अभ्यंतर विधि में कोई त्रुटि होनी चाहिये। उसके बिना ऐसा नहीं हो सकता है।" मैंने उस त्रुटि को खोजने हेतु उनके व्यावहारिक जीवन के बारे में | थोड़ी पूछताछ की। उसमें इनके छोटे भाई की बात निकलते ही वे एकदम आवेश में आ गये और कहने लगे कि 'इस हरामखोर का नाम भी मेरे मुंह से नहीं बुलवाना। छोटी उम्र में हमारे माता-पिता की मृत्यु होने के बाद मैंने बड़े भाई के रूप में मेरा कर्तव्य समझकर उसका पालन पोषण किया। उसको पढ़ा-लिखा कर व्यवसाय में लगवाया और विवाह भी करवा दिया। परन्तु उसने शादी के बाद अपनी पत्नी के उकसाने से ज्यादा धन प्राप्त करने हेतु मेरे पर कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया है। इस नालायक ने सभी उपकार भूलकर मेरे पर अपकार किया है। इसलिए मैं भी अब तो उसे नहीं छोडूंगा। मैंने भी उसके ऊपर मुकदमा दर्ज किया है। मेरा चाहे जो भी हो, परन्तु इस नालायक को एक बार ऐसा बोधपाठ पढ़ा दूंगा कि जिन्दगी भर भूल नहीं पाएगा।" इत्यादि आवेश में बहुत बोलने के बाद उस भाई का आक्रोश कुछ शान्त हुआ, तब मैंने उनसे कहा कि, "अब हम मूल बात पर वापिस आते हैं। देखो, आपने भले ही 36 वर्ष में कई विधियां आजमायी हैं, किन्तु मैं बताता हूँ, उस विधिपूर्वक मात्र 6 महीने ही तुम नवकार की आराधना करो और उसका परिणाम यदि न दिखाई दे तो फिर तुम नवकार दादा को सौंप देना और तुम्हारे साथ मैं भी नवकार को छोड़ दूंगा!!!" (मैंने बाद में यह बात पू. गुरुदेव श्री भद्रंकर विजय जी म.सा. के पास पेश की तब उन्होंने मुझे उपालंभ देते हुए कहा कि, "अपने से नवकार छोड़ देने की बात नहीं की जा सकती। उस भाई का कोई निकाचित कर्मोदय हो और उसे फायदा न हो तो क्या तुम भी नवकार को छोड़ दोगे?" ऐसा कहकर उन्होंने मुझे प्रायश्चित्त भी दिया। परन्तु श्री नवकार महामन्त्र के प्रति अनन्य श्रद्धा के कारण ही मेरे से इस तरह बोला गया था। मुझे पूर्ण विश्वास था कि बाह्य तथा अभ्यन्तर विधि से 57
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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