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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मात्र छलावा है। अरे! अंडों में क्या आपत्ति है? ये तो निर्जीव हैं। नींबू के रस की तरह यह भी एक पौष्टिक रस है "आदि अनेक कुतर्कों की धारा में मेरा अज्ञानी जीव बहने लगा। । किंतु मुंबई रवाना होते समय माँ के पैरों पर हाथ रखकर बार-बार दी हुई तसल्ली और "बेटा! जो तुम इन चीजों का उपयोग करोगे तो तुम मेरे बेटे नहीं! मैं तेरी माँ नहीं! और मैं ऐसे अपवित्र हुए तेरे मुख को भी नहीं देखुंगी "-ऐसी टंकार भरी वाणी दिल में बार-बार गुंज उठती। अशुभ संस्कारों एवं धार्मिक संस्कारों के बीच जोरदार घमासान छिड़ा रहता, अंत में मेरे पाप के उदय के कारण मैं अशुभ संस्कारों में फंस गया। एक बार में पारसी, कैथोलिक, युरोपियन आदि मांसाहारी मित्रों की पार्टी में होस्टल के सहपाठियों के साथ गया। सभी अपने-अपने तरीके से अभक्ष्य पदार्थो के आग्रहपूर्वक आदान-प्रदान में मित्रता की सफलता मान रहे थे। मेरे सामने भी आमलेट की डिश आई। आस-पास के मित्रों ने मेरी प्रबल आनाकानी के बावजूद मुझे तरह-तरह के "धर्मी, वेदज्ञ, ओल्डमैन," आदि ताने देकर डिश हाथ में लेने को प्रेरित किया और चम्मच पकड़कर मेरे मुँह में डालने की अंतिम तैयारी तक कर ली। परन्तु भला हो, हकीकत में मेरे धर्म जीवन को अनमोल रूप से बनाने वाली माँ का। ___एकदम अंतिम समय में मेरी माँ का कल्पना चित्र मेरे सामने उभर आया। "बेटा सुरेश! जो तुमने अपने शरीर को अभक्ष्य पदार्थों से अपवित्र कर दिया तो, तेरे अपवित्र कलंकित काले मुँह को देखने के बजाय मैं मौत को सहर्ष स्वीकार कर लूंगी। इन शब्दों का रणकार गूंज उठा और धड़ाम कर डिश मेरे हाथ में से गिर गई। छुरी कांटे कहीं उछल गये। मुझे ऐसी घृणा हुई कि उल्टियाँ होना शुरु हो गयीं। मेरे मित्रों ने मुश्किल से मेरा हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले जाकर, योग्य उपचार कर मुझे स्वस्थ किया। 29
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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