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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बड़ा होकर डॉक्टर बनना और गरीबों को मुफ्त दवा देनी, व वास्तव में दुःखी न हों, वैसी स्वयं देखभाल कर दुःखियों का दुःख अपने को दूर करना।' .. इस प्रकार की धारणा भावियोग से प्रतिदिन दृढ़ होने के कारण मेट्रिक पास होने के बाद उच्च अभ्यास के लिए मुबंई जाने का तय होने पर सभी कुटुम्बियों की सम्मत्ति होने के बावजूद जीवन के शिरछत्र रूप माताजी के चरण पर हाथ रखकर मुम्बई जाने के लिए आज्ञा मांगी। ___ उस समय मुंबई के संबंध में सुनी हुई बातों के कारण माँ का धार्मिक हदय संकट में पड़ गया, किंतु दूसरी और कौटुंबिक-आर्थिक स्थिति के विचार से सीधा इन्कार करने के बदले इतना ही कहा कि,-"बेटा सुरेश! जो संस्कार तुझे यहाँ मिले हैं, उसे संभालकर रखना। | मुझे इस बात का विश्वास दे कि सात व्यसनों में से तू एक भी व्यसन के फंदें मे नहीं फंसेगा। तू अभक्ष्य भोजन से अपने आप को भ्रष्ट होने नहीं देना।" मैंने पतितपावन माता के शब्दों की गांठ बांधकर दृढ़ अभिग्रह रूप माँ के चरणों पर हाथ रखकर दृढता दिखाई, जिससे मैंने अत्यन्त प्रसन्न हुई माँ के अमी भरे आशिष को प्राप्त कर मोहमयी मुम्बई में पढ़ने के लिए पैर रखे। मुंबई के विलासी वातावरण में कॉलेज जीवन प्रारंभ हुआ। मैं कुदरत के किसी अज्ञात संकेतानुसार डॉक्टरी पढ़ाई में उत्तरोत्तर सफलतापूर्वक आगे बढ़ने लगा। किन्तु पूर्व के पापोदय के कारण डॉक्टरी लाईन में बायोलॉजी और एटोनोमी के टेक्नीकल विज्ञान के पाश्चात्य तरीके से टेबल पर चारों पैर खोलकर जीवित मेंढक को मारकर प्रेक्टीकल करने से आयी निष्ठूरता एवं संस्कार विहीन लक्ष्मी और बुद्धि के घमंड में भान भूले, मौजशोक में ही जीवन का सर्वस्व मानने वाले मित्रों की संगत में विटामिन्स आदि की चर्चा के बहाने "अभक्ष्य होने के कारण मांसाहार नहीं किया जा सकता, ब्राण्डी नहीं पीनी चाहिये, यह सब बकवास है, 28
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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