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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बना दिया, ऐसे महान कार्यों द्वारा जगद्गुरु का यथार्थबिरुद प्राप्त कर उस काल में अद्भुत शासन प्रभावना करने वाले प.पू.आ.भ. श्री हीरसूरीश्वरजी म.सा. के पुनित जन्म से धन्य बनी हुई गुजरात, राजस्थान और बनासकांठा के त्रिवेणी संगम पर, गुजरात के छोर पर आये पालनपुर शहर में सेठ श्री सौभाग्यचन्द लक्ष्मीचन्द झवेरी के यहां जैन कुल के संस्कारों से शोभती कमला देवी की कुक्षी से वि.सं. 1986 महा सुदि 13 दिनांक | 11.2.1930 की रात्री में मेरा जन्म हुआ। मेरे पूर्व के पुण्योदय की कमी के कारण छ: वर्ष की उम्र में शिर छत्र रूप पिताजी की छत्रछाया हमेशा के लिए मेरे लिए गुम हो गई। वात्सल्य भरे दादाजी और तीर्थस्वरूप माताजी के विशिष्ट दुलार तले मेरा लालन पालन हुआ। श्राविका के संस्कारों से सम्पन्न माताजी मुझे अभक्ष्य भोजन, रात्रि भोजन, अपशब्द, असत्य, झगड़े आदि से बचाने हेतु छोटे-छोटे कथानकों से वृत्तियों को मोड़ने का प्रयास करती। वह धर्मकथाएं-महापुरुषों की रोमांचक बातें सोने से पूर्व सुनाकर भावी जीवन निर्माण में अमूल्य योगदान करती। विवेकदृष्टि सम्पन्न दादाजी भी पिताजी की ओर से मिलनेवाले सुंदर प्रशिक्षण और अच्छे उदात्त संस्कारों की कमी को पूरी करने का अत्यन्त वात्सल्यपूर्वक ध्यान रखते थे। . वे मुझे गोद में बैठाकर नवकार, 24 तीर्थकरों के नाम, अपने साधु कैसे? अपना धर्म कैसा? वगैरह हितकर तत्त्व बालसुलभ शैली में मनोरंजन की पद्धति से समझाते थे। हमको योग्य उम्र होने पर व्यावहारिक शिक्षण के प्रारंभ से पूर्व दादाजी उपाश्रय में साधुओं के पास ले जाते, धार्मिक पाठशाला में मौखिक पढ़ाने हेतु भी पहुंचाते, समझा बुझाकर भेजते। कभी अनादिकाल के संस्कार वश चौपट, गिल्ली डंडा आदि के खेल के कारण पाठशाला में नहीं जाता , तब पाठशाला भेजने हेतु दादाजी दंडा (गेडी) लेकर पीछे चल पड़ते। वात्सल्यपूर्वक धार्मिक शिक्षण की आवश्यकता को समझने 26
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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