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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अन्य विषय को भावपूर्वक समर्पित होने के बावजूद नहीं मिलता है। पंच परमेष्ठी भगवन्तों को उल्लासपूर्वक याद करने से आत्मा के पास जाया जाता है, आत्मा के ज्यादा नजदीक जाने से आत्मभाव पोषक प्रवृत्तियों में हदय लीन होता है, विषय कषायों को भाव देने के परिणाम मन्द हो जाते हैं, स्वाध्याय, संयम तप आदि में अद्भुत वेग आता है और बहिर्भावों के अनुकूल की विचारधारा ज्यादा सूक्ष्म बनकर आत्मभाव का पक्ष करती है। भव को विविध प्रकार के भाव देकर हम भाव से छोटे-तुच्छ न बने होते, तो श्री नवकार अपने को तुरन्त फलित होता दिखाई देता, उसी नवकार से हम पूरे विश्व में देवाधिदेव श्री अरिहंत परमात्मा की सर्वोच्च | भावना की पूरी-पूरी प्रभावना कर सकते। भूत काल में अपने पूर्वजों ने प्रभुजी के परम तारक शासन की प्रभावना के जो महान कार्य किये हैं, उस प्रकार के सभी मंगलमय कार्य आज हम भी कर सकते। ('अखंड ज्योत" में से साभार) नवकार महामंत्र का शुद्ध मेल तथा शुद्ध उच्चार | जैन कुल में जन्मे प्रत्येक मनुष्य को नवकार तो पालने (झूले) में ही सीखाया जाता है। उसके बावजूद उसका शुद्ध मेल तथा शुद्ध उच्चार शायद कई प्रौढ़ उम्र में पहुंचे हुओं को भी नहीं आता है। सामान्य शब्दों में भी हस्व-दीर्घ या अनुस्वार वगैरह के परिवर्तन से अर्थ बदल जाता है, तो मंत्राक्षरों में अशुद्ध उच्चार तथा अशुद्ध मेल से लाभ न हो, कम लाभ हो या कभी गैरलाभ भी हो तो आश्चर्य क्या? नीचे के कुछ उदाहरणों से मेल शुद्धि का महत्त्व स्पष्ट हो जाएगा। सुर = देव - सूर = अवाज चिर = लम्बा समय - चीर = वस्त्र 411
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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