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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बीमारी की बात की, तो उन्होंने देशी आयुर्वेदिक दवा ला दी। मेरा अब दवाई पर से विश्वास उठता जा रहा था। उस रोज पेशाब की बिमारी चरम सीमा पर थी। श्रावकों से मैंने कह दिया था कि, 'आज की रात्रि शायद मेरे लिए अन्तिम होगी। शाम का प्रतिक्रमण भी मुझसे करवाया नहीं जायेगा!' क्योंकि कुंडी. लेकर बैठना पड़ता था। बुन्द-बुन्द पेशाब करके थोड़ी सी राहत लेता था। दिन के चार बजे मन में एक संकल्प किया कि अब तो नवकार मंत्र का जाप चालु करूं एवं जो ठीक हो गया तो केसरियाजी की यात्रा कर लूंगा। जाप चाल किया तो पांच बजे एक अपरिचित भाई आते हैं और परेशानी का कारण पूछते हैं। मैंने सब कुछ उन्हें बता दिया। उन्होंने कहा कि, 'मुझे भी किसी अदृश्य शक्ति से प्रेरित किया गया था, सो मैं आपके पास आया हूँ। मैं कोई डॉक्टर तो नहीं हूँ। परन्तु आप एक मुट्री नमक फाक जायें और घुटभर पानी से पेट में उतार दें। पित्त आदि दोषों का निदान हो जाये तो आपको शांति मिल जायेगी। मरता क्या नहीं करता। मैंने शीघ्र नमक लाकर फांका। बड़ी मुश्किल से गले से नीचे उतारा। यद्यपि जीव बहुत घबराया। परन्तु थोड़ी ही देर में बहुत अधिक पिस निकल जाने से बीमारी गायब हो गई। दवा बताने वाले को प्रेरित करने वाले भी नवकार मंत्र के अधिष्ठायक देव ही थे, ऐसा विश्वास स्मृति में दृढ़ हुआ। बीमारी भी नवकार मंत्र के जाप से नष्ट हो गई। (4) लूटेरों से मुक्ति हम दो मुनि सम्मेतशिखरजी की यात्रा से वापिस लौट रहे थे। बिहार में पटना से सासाराम का रास्ता संकरा था। मोटरों का आनाजाना भी बहुत होता था। इसलिए दूसरे मार्ग की खोज की तो दूसरा मार्ग गंगा के ऊपर नावों के पुल पर से पार करके अन्य तरफ से वाराणसी जाता था। सबसे बड़ी समस्या रिक्शे की थी। दो आदमी साथ में थे। एक रिक्शा चलाने वाला और दूसरा जैन था। गंगा पार के आगे एक रोड़ पर ही महात्मा का आश्रम समझ कर स्वीकृति लेकर रुके। साथी आदमियों ने 370
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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