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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - प्रवर्तक गुरुदेव श्री रमेश मुनिजी म.सा.) गोचरी के लिए जा रहे थे। गुरुदेव ने कहा-'आज मेरे लिए कुछ भी मत लाना'। 'क्यों गुरुदेव?' 'आज मैं उपवास करूँगा।' पुनः मुनि श्री ने निवेदन किया, 'आपकी दवाई चालु है। प्रत्युत्तर में गुरुदेव ने फरमाया-'अब सभी दवाएं बन्द हैं। अब नवकार मंत्र की महौषधि लेकर तेला तप करूंगा।' तीन दिन में गुरुदेव ने सवा लाख जाप सहित तेला तप किया। तप जप के पुण्य प्रताप से पूज्य गरुदेव की नेत्र ज्योति बढ़ती चली गई। यह ज्योति अन्तिम समय सं. 2037 तक वैसी ही बनी रही जैसी पहले थी। यह देन है नेत्रज्योतिदाता महामंत्र नवकार की। नवकार महामंत्र कलिकाल का कल्पतरू ही है। हमें अनुभूति चाहिये तो त्याग और आस्था के साथ इसका स्मरण करेंगे। लेखक- गुरु श्री प्रताप प्रवर्तक गुरु श्री रमेशमुनिजी के सुशिष्य गौतममुनि "प्रथम" श्रद्धा से नत होता मस्तक मंत्राधिराज नवकार मंत्र की महिमा उस गुलाब पुष्प के सुरभि की भांति है जो स्वयं ही मानव-मन को सुरभित बना देती है। इस नवकार ने सर्प को माला में परिवर्तित कर दिया, सूली को सिंहासन बनाया, कोढ़ का रोग हटाया। ये सब सुनी सुनाई बातें हो गयीं, पर श्रद्धा से किया हुआ स्मरण हमें भी अवश्य चमत्कार बता देता है। प्रभु भक्ति में, प्रभु नाम में वह शक्ति होती है, कि वह सहज ही अभिव्यक्ति के द्वार खोल देती है। चाहिये आस्था तो अवश्य पा जायेंगे सही रास्ता। सन् 1982 में हम अपनी शिष्यावृन्द सह महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश की ओर आ रहे थे। साथ में दो आदमी भी थे। घाटों का रास्ता। बीहड़ जंगल! साथ में छोटी-छोटी साध्वियाँ। मौत का नहीं, पर शील रक्षा का भी तो प्रश्न रहता है। ऐसे समय 2-4 जंगली व्यक्ति मिले। वे कहने लगे, "वाह महाराज! आगे जाओ। मुफ्त का तैयार खाना मिल जायेगा। जाओ-जाओ, हम भी आगे आ रहे हैं।" अब मैं तो पूरी तरह घबरा गई, 366
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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