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________________ जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? परमेष्ठी को नमस्कार करना है। यह मंत्र शब्द कोष के थोड़े शब्दों का समूह नहीं है, परन्तु हदय कोष का अमृत है। जिसका केवल भावपूर्वक स्मरण मन को चन्दन जैसी शीतलता देता है। नाभि में से यह मन्त्रोच्चार करें तो भीतर में अनादिकाल से पड़े कषाय चकनाचूर हो जाते हैं। यह शारीरिक पीड़ा और मानसिक ताप समाप्त कर चित्त को शान्त करता है। इस मंत्र का चिन्तन मात्र अचिन्त्य चिन्तामणि समान है। लोनावाला में स्वामी विज्ञानानन्द स्थापित वेदांती आश्रम (NEW |WAY) आया हुआ है। यह लिखने वाले ने इस आश्रम की मुलाकात ली थी। आश्रम में अद्यतन यंत्र, मंत्र की शक्ति का माप दर्शाते हैं। विजाण यांत्रिक साधनों द्वारा कितने ही मंत्रों का मंत्रोच्चार कर उसका प्रत्यक्ष नाप बताते समय नवकार मंत्र का सर्वश्रेष्ठ रूप सिद्ध हुआ था, ऐसा जानने को मिला। इस आश्रम में जैन कुल या जैन धर्म अंगीकार किया हुआ कोई साधक नहीं था। मात्र नवकार मंत्र के रटन में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, और साधु-सन्तों का स्मरण, रटन और वन्दन अभिप्रेत है। शुभ और शुद्ध का चिंतन जीवन में शुभ प्रवाह को शुद्धता की ओर गति देगा। जैन कथानकों में नवकार मंत्र के प्रभाव की जो बातें आती हैं, वे केवल चमत्कार या दंतकथा नहीं हैं। उसके पीछे वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य एवं सत्य है। सतत शुभ चिन्तन और विधेयात्मक विचारधारा अनिष्ट और अशुभ का निवारण करती है। इसे आधुनिक मनोविज्ञान ने स्वीकार किया है। लेखक : श्री गुणवंत बरवालिया "गुंजन" सी- 16-17 गुरुकृपा टेरेस, आर.सी. रोड़, चैम्बूर- मुम्बई - 400071 356
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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