SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? की अनुभूतियां होती हैं। इन्द्रियों के विषय की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है, उसमें बिल्कुल नहीं अटकना चाहिये। उसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिये। यदि ऐसी अनुभूति की आकांक्षा या कल्पना करोगे, तो तुम्हारा आध्यात्मिक मार्ग बन्द हो जायेगा और भम्रणाओं में भटक जाओगे। आध्यात्मिक चिंतन-मनन, जाप या ध्यान केवल कर्मों की निर्जरा के लिए होना चाहिये। उसमें विघ्न भी आते हैं, उससे नहीं घबराकर अपना प्रयास चाल रखना चाहिये।" तब मैंने पूछा कि, "जाप, ध्यान, तपस्या इत्यादि प्रवृत्तियां करने से कर्मों की निर्जरा हुई या नहीं, उसका कैसे पता चले? उसकी उपलब्धि क्या?" तब आचार्यश्री जी ने कहा कि, "जो व्यक्ति लघुकर्मी (कम कर्मों वाले या शीघ्र मोक्ष में जाने वाले) होते हैं ,उन्हें आध्यात्मिक चिंतन से मनन की रुचि जगती है। जब वह उसमें कार्यरत होता है, तब धीरे-धीरे प्रगति करता है। उस साधक के राग, द्वेष और कषायवृत्ति कितनी मन्द हुई है, वह उसका मापदण्ड है। साधक कभी भी तीव्र परिणामी, क्रोधी नहीं होता है। मान, माया, लोभ इत्यादि प्रवृत्तियां क्षीण होती जाती हैं। धर्म का सार यही है कि कषाय वृत्तियों का अंत करना। जिससे एकान्त निर्जरा का मार्ग प्रशस्त हो। नवकार मंत्र के जाप से प्रत्यक्ष कोई परिणाम नहीं मिला है और वह प्राप्त करने की भावना भी नहीं है। किन्तु मन के विकारों के शांत होने से पता चलता है कि यही उसकी उपलब्धि है।" लेखक - श्री वसंत नागशी शाह 52, वर्धमान नगर, नागपुर 440000 भय से बचाता महामंत्र लगभग सन् 1945 में कच्छ की ट्रेनें (रेल) बन्द थीं। मुझे अपनी पुत्री जयश्रीबेन को ससुराल से लेने जाना था। कच्छ-वागड़ में भुटकीआभीमासर (तहसील रापर) गांव आया हुआ है। ट्रेनें बन्द होने से मुझे बस 333
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy