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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कुछ दिन रहना पड़ा था। मेरे रहने का मकान गांव से थोड़ा दूर, एकदम अलग था। गांव और इस सरकारी मकान के बीच बड़ा मैदान था। मैदान के छोर पर यह मकान था। गर्मी के दिन थे। उस मकान के बाहर पलंग पर सोने से ही मुझे तारंगा पर्वत के सबसे उंचे स्थान पर आया जैन मन्दिर दिखाई देता था। शायद यह देहरी दादा के पगले के नाम से पहचानी जाती थी। मैंने दो रात तो इस प्रकार खुले में सो कर व्यतीत की। किन्तु तीसरी रात में जल्दी सवेरे गांव का चौकीदार मुझे. उठाने आ पहुंचा। सामान्यतः सरकारी कार्य में सरकारी अधिकारियों के नीचे काम में मदद के लिए सरकार की ओर से ऐसे कारकून श्रेणी के चौकीदार रखे जाते हैं। परन्तु ऐसे कोने में आये गांव में शायद ही कोई अधिकारी आने से यह भाई मनचाहे रूप से जहाँ-तहाँ फिरते रहते थे। मैं आया, उस दिन यह बाहर गांव गया था। उस कारण बाहर गांव से आने के साथ ही जल्दी सवेरे मेरे पास भूल के बदले में माफी मांगता था। दिलगीरी व्यक्त कर रहा था। परन्तु ऐसा सब गांवो में सामान्य रूप से होते रहने के कारण मुझे नया नहीं लगा। परन्तु मुझे वास्तव में नयी बात तब लगी, जब वह मुझे उपालम्भ दे रहा हो इस प्रकार से उसने पूछा कि, 'साहब, आपको गांव से इतने दूर एकान्त में इस प्रकार खुले स्थान पर सोने को किसने कहा?' में अपनी इच्छा से है. यहाँ सोया था, इसलिए मुझे किसी पर दोष देने का प्रश्न ही नहीं था। उससे मैं चुप रहा। इसलिए चौकीदार मेरे पलंग से 20-25 फीट दूर जमीन पर नजर डालकर बोला, "साहब, जरा आप इधर आओ तो! आपने यहाँ सोने में कितना बड़ा जोखिम किया है, उसका आपको पता पड़ता है?' __में स्वाभाविक रूप से उसके पास गया, तो उसने मुझे नरम जमीन पर बाघ के ताजे ही अस्पष्ट पदचिह्न भी बताये। मैं तो यह देखकर आश्चर्य में डूब गया। उससे पांच-दस फीट के अन्तर पर उसने मुझे दूसरे बाघ के पैर भी बताये। मैंने चमक कर इशारे से ही पूछा, 'यह क्या है?' 304
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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