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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? माला का जाप शुरू किया। वह जैन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धावान बने । उस चातुर्मास में उपधान तप की क्रिया देखकर उनमें क्रिया रुचि उत्पन्न हुई और प्रतिदिन मौन पूर्वक एक सामायिक करना प्रारम्भ किया । अपने उपकारी गुरुदेव जहाँ भी हों वहां प्रतिवर्ष जाकर पर्युषण में एकान्तर चार उपवास एवं चार एकासन पूर्वक 64 प्रहरी पौषध करना प्रारम्भ किया । यह क्रम पिछले 12 वर्ष से अटूट रूप से चालु ही है। ट्रेन्ट गांव में एक भी जैन घर नहीं होने के बावजूद जैन धर्म का पालन करने के कारण प्रारम्भ में लालुभा को ग्रामवासियों का तीव्र विरोध सहना पड़ा। तब व्यवहार दक्षता का उपयोग कर लालुभा ने अपने गुरुदेव श्री के मार्गदर्शन अनुसार शिव मन्दिर में जाकर भी भवबीजांकुर जनना, रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ भावार्थ:- संसार रूपी बीज में से अंकुर उत्पन्न करने वाले राग द्वेषादि दोषों का जिसने नाश कर दिया है, वैसे जो कोई भी देव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश या जिनेश्वर प्रभु हों, उन्हें मेरा नमस्कार हो । यह श्लोक बोलकर बाह्य दृष्टि से शिवलिंग के दर्शन करते दिखते लालुभा भाव से तो जिनेश्वर प्रभु को ही नमस्कार करते थे। गजब का गुरुसर्मपण रखने वाले लालुभा ने सं. 2045 में गुरुदेव श्री के साथ वर्षीतप प्रारम्भ किया और पारणा भी गुरुदेव के साथ हस्तिनापुर तीर्थ में किया। उन्होंने सं. 2048 में वर्धमान तप की नींव डाली। उसी तरह कषायजय तप तथा धर्मचक्र तप पूरा करने के बाद वीरमगाम से प्रभुजी को ट्रेन्ट गांव में लाकर ठाठ-बाठ से स्नात्र महोत्सव करके पूरे गांव को भोजन करवाया, किन्तु स्वयं ने तप निमित्त से दी जा रही प्रभावना का भी नम्रतापूर्वक अस्वीकार किया। उन्होंने सं. 2049 में की फा.सु. 13 को शत्रुंजय गिरिराज की छः कोस की यात्रा तथा आदिनाथ दादा की पूजा की। दादा की छत्रछाया में, 292
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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