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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - देखीं। शरीर में से कंपकंपी निकल गयी। यदि नवकार की शरण में नहीं गये होते, तो अपनी भी यही स्थिति होने में देर नहीं लगती। तब से अद्वितीय श्रद्धा-भक्ति से नवकार गिना जाता है। - (2) हम वह चातुर्मास जामनगर कर सं. 2031 में जूनागढ़ की ओर आते उपलेटा गांव में प्लोट के जिन मन्दिर में उतरे। श्रावकों ने कहा, "रात रहना हो तो किसी बंगले में रहना।" किन्तु हमने विशेष ध्यान नहीं दिया। एक ही लाईन में मन्दिर का कमरा था। उसके बाद मन्दिर-उपाश्रय के बर्तन-सामान के कमरे के बीच दरवाजा और अंत में उपाश्रय क्रमशः थे। हम रात में साढे नौ बजे संथारा कर सोये और साढे ग्यारह बजे आवाज आने लगी। पहले तो ऐसे लगा कि बिल्ली अन्दर आ गयी होगी? उपाश्रय लम्बा था। एक ओर जाएं तो दूसरी ओर आवाज सुनाई देती। फिर |तो आवाज बढ़ने लगी। छत पर धड़ाधड़ आवाज होती थी। पास में बर्तन गिराने की आवाज आती। क्या करना? घबराहट एवं बैचेनी के बीच पास में रहते स्थानकवासी भाइयों को आवाज दी तो जैसे हमारी आवाज बाहर |जाती ही नहीं थी। हम अन्त में अन्तिम उपाय के रूप में संथारे पर ही |सागारिक अनसन कर नवकार की शरण में गये। ठीक साढे तीन बजे | एकदम शान्ति हो गयी और विघ्न टला मानकर आवश्यक क्रिया करके जाग्रत ही रहे। सवेरे बड़ी मारड़ की ओर जाते समय पूजारी साथ में था। |उसे कहा कि, "रात को ऐसा घटित हुआ।" तो उसने कहा कि, "महाराज श्री! यहां ऐसा होता है। जो पहचान के हों तो महाराज साहेब किसी के बंगले सोने चले जाते हैं। किन्तु अनजान को हम नहीं कहते हैं। |यदि कह दें तो कोई उपाश्रय में नहीं रहेगा। हम रोज किसके बंगले में भेजें?" हमने कहा, "भाई! अनजान को तो तुम्हें खबर देनी चाहिये। छाती की धड़कने बैठ जायें, ऐसे उपद्रव में यदि नवकार की शरण नहीं मिले |तो आदमी डरकर मर जाये।" दूसरी बार इस प्रकार प्रकट प्रभावी महामंत्र ने हमको बचाया।. (3) संवत् 2034 के वर्ष में कच्छ कोटड़ी-महादेवपुरी में चातुर्मास 277
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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