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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दोनों पैर मेरी छाती पर रखकर वह मेरे चेहरे पर दांतों से काटने के लिए तैयार हो गया था। मैंने मौन होने से लकड़ी से दूर करने का निर्दोष प्रयास किया, किन्तु निष्फल गया। मैं जोर से नवकार बोलने लगा। कुत्ता घेरा छोड़ता ही नहीं था। में तेजी से भाग कर रोड़ की एक ओर बैठकर निर्भय मन से नवकार गिनने लगा। कुत्ता आक्रमण करना छोड़कर आश्चर्य के साथ पिछले पैरों से धूल उड़ाता चलता बना। "पीर की छाया दूर हुई" पालियाद के एक युवान को मुसलमान पीर के स्थान से छाया लगी। वह घर आकर उर्दू भाषा में असंबद्ध वार्तालाप करने लगा। तीर्थकर भगवान एवं देवी का पाठ करते वह पीर शरीर में प्रवेश कर बोलने लगा, " मैं इसको नहीं छोडूंगा, मेरी जगह को इसने नापाक कर दी। मैं इसकी जान लूंगा। मैंने महामन्त्र नवकार का जाप कर प्रतिकार किया, "फिरस्तों को तो बच्चों की भूल माफ करनी चाहिये "इत्यादि कहा। अन्त में उसने कहा कि, "आप कहते हो इसलिए मैं चला जाता हूँ।" उसके बाद वह युवक स्वस्थ होकर आज मुम्बई में सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा है। उसके कहने के अनुसार पीर ने जाते-जाते कहा कि, "तुम्हारे गुरु एवं धर्म पर श्रद्धा रखना। जैन गुरु तुम्हारी रक्षा करने वाले हैं। अब मैं तुम्हें हैरान नहीं करूंगा।" "नाग भाग गया " बोटाद के धर्मप्रेमी रसिकभाई गांडालाल वोरा (रेल्वे क्लर्क) वेगन में| खड़े रहकर रेल्वे के माल की नोट करते थे। उस समय वेगन के किसी। कोने में से निकले हुए भंयकर नाग ने उनके पैर को घुटनों तक लपेट | लिया। पेपर-पन्सिल हाथ में रह गये। रसिक भाई स्वस्थता से नवकार मन्त्र का स्मरण करने लगे। मजदूर चिल्लाने लगे। शेष रहे मजदूर कूदकर वेगन में से उतर गये, किन्तु वोरा साहब तो ध्यानस्थ योगी की तरह खड़े रहकर नवकार मन्त्र का जाप करते रहे। नाग पैर में से नीचे उतरकर वेगन से बाहर निकल गया। रसिकभाई अभी ऐसा ही मानते थे कि नाग पैरों में 262
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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