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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पिताजी साथ आये, किन्तु प्रतिक्रमण करने इतना जल्दी कोई नहीं आता। इसलिए इनको एक घंटा बैठा रहना पड़ता। यह मातृश्री को अच्छा नहीं लगा और एक शाम उन्होंने कहा "कल से तुम्हें जाप करना हो तो अकेली चली जाना। कोई छोड़ने नहीं चलेगा।" में माताजी के कठोर शब्दों से रोयी। फिर भी शान्त होकर नवकार गिनते सो गई। मैं दूसरे दिन प्रतिदिन के अनुसार तैयार होकर नवकार गिनते चली गयी। भय तो साथ में ही था। जैसे ही स्थानक के दरवाजे को हाथ लगाया, वहां एक जोरदार आवाज आयी। मैं भयभीत होकर सीधी दौड़ी। स्थानक में विराजमान महासतीजी प्रेमकुंवरबाई स्वामी तथा कंचनबाई स्वामी ने मुझे पकड़ लिया। प्रेम से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए नवकार सुनाने लगे। थोड़ी देर में ही मैं स्वस्थ हुई। उन्होंने हकीकत पूछी। मैंने कहा, "आपने कुछ भी नहीं सुना?" उन्होंने कहा, "नहीं, हमने तो केवल तेरी चीख ही सुनी।" मैंने कहा, "मुझे डराने कोई पीछे पड़ा था।" उन्होंने कहा, "अच्छा बेटा! अब डर मत रखना। नवकार मंत्र के पास किसी की ताकत नहीं है। चल अब जाप में बैठ जा।" पन्द्रह मिनट में भय शान्त हुआ। जाप में स्थिरता आई। वहां तो माला के मणके सोने के बनते गये। अन्त में मेरू भी सोने का बन गया। माला सुगन्ध से महक उठी। एक घंटे बाद दूसरी बहिन ने माला हाथ में ली तब मेरे दिल में भय का नामोनिशान नहीं था। हदय में अपूर्व शान्ति थी। फिर दूसरा दिन आया। घर से निकली और डर लगा। नवकार मंत्र याद आया। मैंने गली के बाहर पैर रखा और कुत्ता साथ में हो गया। मुझसे सहसा बोला गया, "भाई तू चला जा। दूसरी गली के कुत्ते तुझे हैरान करेंगे।" वह मूक भाषा में पूंछ हिलाता हुआ स्थानक तक रक्षक के रूप में साथ चला। स्थानक आते मैंने कहा, "भाई! अब जा।" पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था। 21 दिन निरंतर ऐसा हुआ। जाप अखण्ड रहा वैसे सुगन्ध भी अखण्ड रही। उसके ही प्रभाव से मेरी संयम की भावना जाग्रत हुई। 251
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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