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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - भावना होती थी। गायक खूब भक्ति जमाते थे। पूजारी बसरामभाई ने माघ सुदि 8 के दिन मुझे पूछा कि, 'आज कितनी आंगी करूं?' मैंने कहा कि, 'नीचे मूलनायक भगवान तथा दोनों बड़े जिनबिम्बों की करना।' उसने उस प्रकार की। माघ सुदि 9 को वरघोड़ा और सन्मान पत्र का कार्यक्रम था। उस कारण पूजारी ने पूछा कि, 'आज कितनी आंगी रचाऊं?' मैंने कहा, "नीचे तीन भगवान और ऊपर मूलनायक भगवान की रचाना।" प्रतिदिन बाकी के सभी जिनबिम्बों को बरक लगाता था। उस प्रकार सभी जिनबिम्बों की अंग रचना करके पूजारी ने नीचे बोर्ड के ऊपर लिखा कि, "ऊपर आंगी है, इसलिये दर्शन करने पधारना।" | हम सभी वरघोड़े के बाद नवकारसी के कामकाज में लाभ ले रहे थे कि दो आदमी आंगी मुकुट सहित लेकर भाग गये। उसके बाद एक श्राविका ऊपर दर्शनार्थ गयी और आंगी न देखने पर नीचे आकर पूजारी को कहा कि 'तुम लिखते हो कि ऊपर आंगी है। |किन्तु आंगी कहाँ रची है?' पूजारी ने कहा, 'मैंने रची है, फिर ऐसे कैसे हो सकता है?' ऊपर जाकर देखा तो आंगी-मुकुट गायब! तुरन्त नीचे आकर सूचना दी कि"आंगी चोरी हुई है।" मुझे समाचार मिलते ही दुःख हुआ कि मेरे कहने से ही आंगी रचाई और गयी तो मेरी जिम्मेदारी है, यह समझकर मैंने बहुत ही भाव पूर्वक नवकार मंत्र का स्मरण किया। फिर गांव के एवं मेरी दीक्षा के प्रसंग को दिमाग में रखकर सोचा कि इस गांव का कोई व्यक्ति | ऐसा कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मेरा जीवन इस प्रकार का था। सभी के साथ मेरा प्रेम ऐसा था कि मेरी दीक्षा के समाचार से सभी को दुःख होता था कि अब कैसे होगा। इसलिए मुझे कहते थे कि, "आप तो बिना दीक्षा ही, दीक्षा जैसा जीवन जी रहे हैं फिर किसलिए दीक्षा ले रहे हैं? हमारा क्या होगा?" तब मैं कहता, "यदि मैं दीक्षा के बाद प्रमादी बनुं तो कहना कि 243
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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