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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? थी। उसमें पिता बहुत ही आत्महितचिंतक थे। वे संसार में रहकर भी साधु जैसा जीवन जीते थे। उन्होंने 35-45-60-70 उपवासों की उग्र तपस्याएँ 50 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने के बावजूद की थी। बीच में ज्ञान प्राप्ति भी चालु थी । ऐसे उत्तम पिता के वारिस होने के कारण सं. 1966 में उनके 70 उपवास के समय हमारे घर के जितने लोग गये थे, उन्होंने मिलकर 70 उपवास करने का सोचा। इस उत्तम विचार से मैंने अट्ठाई की । इससे पूर्व मैंने छट्ट, अट्टम भी नहीं की हुई थी। फिर भी अट्ठाई अच्छी हुई। उससे ही तप-जप में वृद्धि हुई । पिताजी श्री विलासविजयजी म.सा. के आशीर्वाद से हमारे घर में हम चार भाई एवं दो पत्नियाँ और लड़के भी मासक्षमण तक की तपस्याएं कर सके हैं। लघु बांधव श्री ॐकारविजयजी म.सा., गुरु विनय भक्ति में ओत प्रोत होकर ज्ञान में बहुत ही आगे बढ़ गये। वह तत्वज्ञानी और विचक्षण होने से आचार्य पद योग्य हुए और उन्होंने सं. 2010 में आचार्य पद प्राप्त किया। मेरे बड़े लड़के की 10 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने की भावना हुई। यह भावना समझ पूर्वक की है ऐसा जानकर, मैंने शिखर जी की यात्रा करवाकर अत्यन्त ठाठपूर्वक घर आंगन में ही महोत्सवपूर्वक दीक्षा दिलायी। वे आज यशोविजयजी म. सा. (हाल आचार्य) के रूप में ज्ञानध्यान में आगे बढ़ रहे हैं। इस प्रकार मेरे परिवार एवं रिश्तेदारों में से कई दीक्षित हुए। माताजी के पिताजी, माता, मौसी का लड़का, भानजी एवे तीन फोई परिवार के साथ दीक्षित हुई हैं। आज न्याय विशारद एवं आगमों के उद्धारक के रूप में कार्य करने वाले पू. जम्बूविजयजी म.सा. वर्तमान में शासन उन्नति का कार्य कर रहे हैं। उनके पास विदेशों से पढ़ने के लिए लोग आते हैं। उनका भी उस साल चातुर्मास समी में था। ऐसे अनेक आलंबनों से मेरी दीक्षा की भावना प्रबल बनी और सं. 241
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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