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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बहुत तूफान के झोंके देखे थे, किंतु ऐसा नहीं देखा था। "और... और क्षणभर में हमारे जहाज टूटकर टुकड़े हो गये। हमारे नाविकों एवं खलासियों के हाथ, कुदरत के सामने लाचार बने । सागरराज की प्रचंड आवाज ने हमें बहरा बना दिया और हमारे नाविक एवं खलासी कहीं अदृश्य हो गये। किंतु... किंतु... रे! मेरी किसी पूर्वभव की पुण्याई होगी, जिससे उस जहाज के एक पाटिये से मैं चिपका रहा । जीवन की कोई आशा नहीं थी । प्यारे साथीदार गायब हो गए थे। जहाजों में भरा हुआ लाखों का माल सागरराज निगल गये थे। अरे, प्राण से भी प्यारे जहाज भी टूटकर टुकड़े हो गये थे। रहा था केवल मैं और... और उस समय मुझे आपके इस महामंत्र का स्मरण हो आया। मैं जिन्दगी में पहली बार नास्तिक में से. आस्तिक बना। मैंने इस महामंत्र का स्मरण किया और तूफान के थपेड़ों से मैं बेहोश हो गया। जब मैं होश में आया तब किनारे पर पड़ा था। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि मैं जीवित हूँ। मैंने अपने गाल पर चिमटी भरी तब मुझे लगा कि मैं जीवित हूँ। मैंने तुरंत फिर से महामंत्र का स्मरण किया और वहां से चलने लगा। चलते-चलते इस गांव में आ पहुंचा। यहाँ आते समाचार मिले कि आप यहीं विराजमान हो और तुरंत ही मैं आपके चरणों में आलोटने आ दौड़ा।" इतना कहते ही वह फिर मुनिराज के चरणों में गिर पड़ा। सभी मुग्ध बन गये। मुनिराज ने कहा, " देखा न, यह महामंत्र का तेज । " सभी के दिल में सच्ची श्रद्धा बैठ गई। सभी ने जिनशासन का जयघोष गुंजायमान कर दिया। लेखक / सम्पादक : प. पू. पंन्यास श्री अभयसागरजी म.सा. 186
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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